तीसरा अध्याय / वाक्य-रचना
(घ) विपरीतार्थक शब्द
कई बार वाक्य में जोर देने के लिए विपरीतार्थक (जिनके अर्थ एक दूसरे के उलटे हों शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। कुछ विपरीतार्थक शब्द ये हैं
आदि-अन्त सुख-दुःख हर्ष-विषाद
आगे-पीछे शत्रु-मित्र पाप-पुण्य
ऊँच-नीच लाभ-हानि सच-झूठ
कृश-स्थूल जीवन-मरण आज्ञा-अवज्ञा
स्थावर-जंगम जड़-चेतन एक-अनेक
आकाश-पाताल सृष्टि-संहार पंडित-मूर्ख
धर्म-अधर्म शुभ-अशुभ ज्ञान-अज्ञान
उचित-अनुचित मान-अपमान जय-पराजय
चर-अचर संयोग-वियोग अनुकूल-प्रतिकूल
लौकिक-अलौकिक धनी-निर्धन उद्धत-विनीत
यश-अपयश मुलिन-निर्मल स्वतंत्र-परतंत्र
नूतन-पुरातन शीत-उष्ण कृतज्ञ-कृतध्न
ऋण-उऋण उन्नति-अवनति सरस-नीरस
सज्जन-दुर्जन सुगम-दुर्गम सुलभ-दुर्लभ
अर्वाचीन-प्राचीन स्थिर-चंचल अनुराग-विराग
(ङ) रोजमर्रा
प्रत्येक भाषा में बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि कई शब्द विशेष शब्दों के साथ ही प्रयुक्त होते हैं, और भिन्न-भिन्न रूपों में रखे जाते हैं इसके लिए कोई विशेष नियम नहीं होते परन्तु बोल-चाल में रोज प्रयुक्त होने के कारण वैसा प्रयोग करने की चाल पड़ जाती है। जैसे-सात आठ दिन में आऊँगा। आठ-दस पुस्तकें दे दो। इसमें सात-आठ और आठ दस ऐसे ही प्रयोग हैं। इनके स्थान में सात-नौं या सात-दस नहीं कहा जाता है। ऐसे ही चुंगली खाना' कहा जाता है। 'चुगली पीना' नहीं कहा जाता। 'विद्या वृहस्पति के समान' कहा जाता है, 'इन्द्र के समान' नहीं कहा जाता। इनमें कुछ प्रयोग तो नित्य के व्यवहार में आने से और कुछ जातीय इतिहास की घटनाओं से बन जाते हैं। कुछ ऐसे प्रयोग नीचे दिये जाते हैं।
अंड-बंड, अन्धाधुन्ध, अटकलपच्चू, आगे-पीछे, उथल-पुथल, ऐसी-वैसी, काँट-छाँट, खींचातानी, चमक-दमक, चहल-पहल, चाँडाल-चौकड़ी, छल प्रपंच, छान-बीन, जैसे-तैसे, जोड़-तोड़, डाँवाडोल, दाना-पानी, धूम-धाम, यकायक, मुटभेड़, हाथों-हाथ।
ये प्रयोग साहित्य के अध्ययन से ही जाने जा सकते हैं।
कुछ ऐतिहासिक प्रयोग नीचे दिये जाते हैं।
परशुराम का क्रोध-अत्यधिक क्रोध।
दुर्वासा का श्राप-उग्र शाप।
दुर्वासा मुनि-बहुत क्रोधी व्यक्ति।
कर्ण का दान-महादान।
भागीरथी प्रयत्न-बहुत बड़ा प्रयत्न।
भीष्म प्रतिज्ञा-कठोर प्रतिज्ञा ।
पाँचाली-चीर- बड़ी लम्बी, कभी समाप्त न होने वाली वस्तु या बात।
रामबाण-तुरन्त प्रभाव दिखाने या कभी न चूकने वाली वस्तु।
कुम्भकर्णी नींद-बहुत गहरी, लापरवाही की नींद।
नारद मुनि-इधर-उधर की बात कर कलह कराने वाला व्यक्ति।
विभीषण-घर का भेदी।
रामराज्य-ऐसा राज्य जिसमें बहुत सुख हो।
धन-कुबेर-अत्यधिक धनवान।
हम्मीर-हठ-अनूठी आन।
चाणक्य-नीति-कुटिल नीति।
महाभारत- भयंकर युद्ध।
लंकाकांड-भयंकर युद्ध।
(च) मुहावरे और लोकोक्तियाँ
वे वाक्यांश जो अपना सामान्य अर्थ बता कर कुछ विलक्षण अर्थ प्रकट करते हैं, वाग्धारा का मुहावरा कहाते हैं और बोल-चाल में बहुत आने वाला ऐसा बँधा वाक्य जिसमें कोई अनुभव की बात संक्षेप में और प्रायः अलंकृत भाषा में कही गई हो लोकोक्ति या कहावत कहाता है। जैसे-मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं, जब से उनका लड़का मरा है उनकी कमर टूट गई है, वह इतना चालाक है कि अपने मालिक को उँगलियों पर नचाता है, इन वाक्यों में 'पेट में चूहे कूद रहे हैं', 'कमर टूट गई है', 'उँगलियों पर नचाता है'। इन तीनों वाक्यांशों का वह तात्पर्य नहीं जो उनका शब्दार्थ है। यहाँ 'पेट में चूहे कूदने' का अर्थ है 'सख्त भूख लगना', 'कमर टूटने' का अर्थ है 'उत्साह या शक्ति का न रहना, तथा 'उँगलियों पर नचाने' का अर्थ है ' अपने वश में रखना' । अत: ये तीनों वाक्यांश मुहावरे कहलाते हैं।
इसी प्रकार जब कोई आदमी काम करना न जानता हो परन्तु अपने अज्ञान को छिपाने के लिए बहाने बनावे तब कहा जाता है 'नाच न जाने आँगन टेढ़ा' और जब कोई आदमी अनेक शपथें खाकर भी अपनी बुरी आदत न छोड़े तब कहा जाता है 'कुत्ते की दुम सौ वर्ष तक नली में रखो तो भी टेढ़ी।' ये दोनों बँधे हुए वाक्य हैं और इनमें अनुभव संक्षेप में तथा अलंकृत भाषा में कहे गये हैं, अतः ये लोकोक्तियाँ हैं। मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा में लालित्य, चमत्कार तथा प्रौढ़ता आती है। मुहावरेदार भाषा बहुत पसन्द की जाती है और लोकोक्तियुक्त कथन बड़ा प्रभावशाली होता है। अतः इनका ज्ञान भी आवश्यक है। मुहावरे और लोकोक्तियाँ अनन्त हैं और इनका प्रयोग धुरन्धर लेखकों के लेख पढ़ने से ही जाना जा सकता है।
विद्यार्थियों के साधारण ज्ञान के लिए कुछ प्रमुख लोकोक्तियाँ और मुहावरे आठवें अध्याय में दिये गये हैं। विशेष ज्ञान के लिए डॉ० बहादुरचन्द्र शास्त्री एम० ए०, पी० एच० डी० द्वारा संपादित और हिन्दी भवन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित, लोकोक्तियाँ और मुहावरे' नामक पुस्तक देखिए
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