Sunday, February 7, 2021

चन्द्रगुप्त / कथावस्तु

         

                                        चन्द्रगुप्त 

                                        कथावस्तु

                                        प्रथम अंक

       दृश्य 1

       तक्षशिला के गुरुकुल का मठ है। चाणक्य और सिहरण में बातचीत कि होती है। सिहरण तत्कालीन आर्यावर्त की परिस्थिति को अवगत कराता पव है। आम्भीक तक्षशिला का राजकुमार है। वह यवनों को आर्यावर्त में प्रवेश करने में सहायता देनेवाला है। चाणक्य. और सिहरण की बातचीत से उसे सदेह हो जाता है कि गुरुकुल कुचक्र का निलय बन रहा है। वह सिंहरण से विशेष विवरण माँगता है। सिंहरण निराकरण करता है। वाद-विवाद बढ़ता है। अलका आम्भीक की बहन है। वह सिंहरण के व्यक्तित्व से मुग्ध होती है। वह अपने भाई को समझाती है। परन्तु आम्भीक नहीं सुनता। आम्भीक तलवार चलाता है। चन्द्रगुप्त अपनी तलवार पर उसे रोकता है। अलका आम्भीक को ले जाती है। अलका और सिंहरण में बातचीत होती है। दोनों एक दूसरे को समझने की चेष्टा करते हैं।

        दृश्य 2

         मगध-सम्राट का विलास-कानन है। नंद और राक्षस मदिरा का पान करते हुए दिखायी पड़ते है। सुवासिनी शकटार की कन्या है। वह मात्र भरनेवाली है। वह अभिनय के साथ गाती है। सम्राट नद राक्षस से गाने के लिये कहता है। वह राक्षस को अपना अमात्य बनाता है।

       दृश्य 3 

        चाणक्य कुसुमपुर पहुंचता है। उसे वहाँ के लोग बताते हैं कि नद द्वारा उसके पिता चणक निर्वासित कर दिया गया। शकटार का वध किया गया। उसका परिवार समाप्त किया गया। उसकी कन्या सुवासिनी का पता नहीं। इससे दुखी चाणक्य नंद-वश का उन्मूलन करने का निर्णय लेता है।

       दृश्य 4

       कुसुमपुर के सरस्वती-मदिर के उपवन का पच है। सुवासिनी राक्षस को बताती है कि चाणक्य ने बौद्ध धर्म की निदा की है। राक्षस सुवासिनी के साथ अपने सणिक जीवन की सुखमय बनने की इच्छा प्रकट करता है। चन्द्रगुप्त राजकुमारी ल्याणी की चीत से रक्षा करता है।

      दृश्य 5

     मगध में नद की राजसभा है। राक्षस सम्राट नंद को बताता है कि पर्वतश्वर ने कल्याणी से विवाह करने केलिये इन्कार किया है। नंद पर्वतेश्वर की यवनों से युद्ध में सहायता न करने का निर्णय लेता है। चाणक्य नद की शासन-नीति की निंदा करता है। वाद-विवाद बढ़ता है। प्रतिहारी चाणक्य की शिखा पकड़कर घसीटता है। चाणक्य नद-वश के नाश करने की प्रतिज्ञा करता है।

        दृश्य 6

        सिन्ध तट पर सिंहरण आकर अलका की यवन सैनिक से रक्षा करता है। यवन के साथ युद्ध होता है। सिंहीण घायले होता है। नाव  में बैठकर सिंहरण चला जाता है। यवन अलका को गाधार नरेश । पास ले चलता है।

       दृश्य 7

       मगध के बन्दीगृह में चाणक्य है। वह ब्राहमणत्व के बारे में अपने विचार प्रकट करता है। वररुचि चाणक्य को वार्तिक लिखने में अप्त सहायक बनाना चाहता। राक्षस चाणक्य को तक्षशिला में मगध के -प्रणिधि बनकर जाने के लिए कहता है। चाणक्य नहीं मानता। चन्द्रगर आकर चाणक्य को छुड़ाकर ले जाता

        दृश्य 8

        इस दृश्य में गाँधार नरेश, अलका और आम्भीक के चरित्र या प्रकाश पड़ता है। गान्धार नरेश चिन्तायुक्त और अधिक पुत्र-प्रेमी दिखायी पड़ता। अलका में देश के प्रति अनन्य भाव है। पर्वतेश्वर और चाणक्य के बीच बातचीत होती है। चाणक्य कहता है कि वह चन्द्रगुप्त को क्षत्रिय बनायेगा और मगध को क्षत्रिय-शासन में लायेगा। पर्वतेश्वर उसकी बातों का परिहास करता है और उसे देश से बाहर हो जाने की आज्ञा देता है। इससे चाणक्य में प्रतिशोध की ज्वाला और भी अधिक होती है।

       दृश्य 10

       चन्द्रगुप्त पसीने से तर लेट जाता है। एक व्याघ्र समोपं आती दिखायी पड़ता है। सिल्यूकस प्रवेश करके धनुष संभालकर तीर चलाता है। व्याघ्र मरता है। सिल्यूकस चन्द्रगुप्त को चैतन्य करने की चेष्टा करता है। चाणक्य जल ले आता है। चन्द्रगुप्त सिल्यूकस के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है।

       दृश्य 11

       सिन्धु तट पर दाण्ट्यायन का आश्रम। दाड्यायन भारत के तपस्वी है। वे बड़े दार्शनिक हैं। एनिसाक्रीटीज सिकदर का सहचर है। वह दाड्यायन से मिलकर कहता है कि सिकदर आपके उपदेश ग्रहण करना चाहता है।


समापन उससे स्पष्ट कहता है-"मैं लोभ से, सम्मान से या भय से । al के पास नहीं जा सकता।" सिकंदर स्वयं आकर उनके दर्शन करता हाबाइयायन सिकंदर को प्रजा के कल्याण में लग जाने की सलाह देते हैं।

                               द्वितीय अंक

      दृश्य 1

       कार्नेलिया के मधुर गीत से द्वितीय अक का आरम्भ होता है। आय्य्यावर्त की वन्दना करती है। यहाँ के प्रशांत वातावरण से मुग्ध होती है। सिकंदर का क्षत्रप फिलिप्स वहाँ आता है। वह कार्नेलिया से | जातचीत करता है। उनका संवाद उग्र रूप धारण करता है। फिलिप्स कार्नेलिया का अपमान करना चाहता है। चन्द्रगुप्त उसकी रक्षा करता है। सिक्दर मगध राज्य को हस्तगत करने में चन्द्रगुप्त की सहायता करने की बात कहता है। चन्द्रगुप्त नही मानता। ग्रीक लोगों को लुटेरा बताता है। सिकंदर चन्द्रगुप्त को बन्दी बनाना चाहता है। आम्भीक, फिलिप्स, एनिसाकीटीज उस पर टूट पड़ते हैं। चन्द्रगुप्त उन तीनों को घायल करता हुआ निकल जाता है।

     दृश्य 2

       झेलम तट का बन-पथ है। चाणक्य और अलका देश की स्थिति पर बाते करते हैं। सिहरण और चंद्रगुप्त वहाँ आते हैं। वे चाणक्य की सलाह पर चन्द्रगुप्त, सिंहरण और अलका वेष बदलकर पर्वतेश्वर की सेना के पास पहुँचते हैं।

     दृश्य 3

       यवनों से युद्ध करने में पर्वतेश्वर की पराजय होती है। सिकंदर पर्वतेश्वर की वीरता से मुग्ध होता है। दोनों के बीच सधि होती है। अलका घायल सिहरण को उठाती है। आम्भीक दोनों को बन्दी बनाकर पर्वतेश्वर के पास भेज देता है।

    दृश्य 4

     मालव के उद्यान में मालविका अपने विचार प्रकट करती है। उसके विचार बौद्ध-दर्शन के अनुकूल हैं। चन्द्रगुप्त ऐन्द्रजालिक के वेष में प्रवेश करता है। वह मालविका से मुरली की एक तान सुनाने का अनुराध करता है। चाणक्य प्रवेश करता है। मालविका संगीत नहीं सुनाती। इस दृष्य । में चन्द्रगुप्त के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है।

    दृश्य 5

    बन्दीगृह में घायल सिंहरण और अलका के मध्य वार्तालाप चलता । है। अलका सिहरण से कहती है-"मैं पर्वतेश्वर से ब्याह करना स्वीकार । करें, तो संभव है कि तुमको छुड़ा।" इससे सिंहरण को दुःख होता है। अलका पर्वतेश्वर से विवाह करने केलिये दो शर्ते लगाती है. (1) सिंहरण के देश पर यवनों का आक्रमण होने पर पर्वतेश्वर की सेना यवनों की सहायक न बने। (2) सिंहरण अपनी मालव की रक्षा केलिये । मुक्त किया जाय।

     दृश्य 6

      मालवों के स्कन्धावार में युद्ध परिषद में कुमार सिहरण के पुनः आगमन से हर्ष छा जाता है। चाणक्य प्रस्ताव रखता है कि समस्त सेना के संचालन का भार चंद्रगुप्त पर रखा जाय । युद्ध परिषद् उसे स्वीकार करता है।

     दृश्य 7

     अलका और पर्वतेश्वर के मध्य वार्तालाप होता है। अलका एक गीत गाती है। पर्वतेश्वर के साथ बहाना करके अलका भाग निकलना चाहती है।

     दृश्य 8

रावी के तट पर सैनिकों के साथ मालविका और चन्द्रगुप्त। अलका प्रवेश करती है। युद्ध की तैयारी। चंद्रगुप्त यवनों को भारत की सीमाओं से लौटाने का संकल्प पुनः दोहराता है।

     दृश्य 9

      चाणक्य, कल्याणी और राक्षस के मध्य वार्तालाप। चाणक्य राक्षस और कल्याणी को मगध जाने से रोकने में सफल होता है। 

      दृश्य 10

मालव दुर्ग के भीतरी भाग में मालविका और अलका के मध्य । वार्तालाप। मालविका घायलों की सेवा में लग जाती है। सिकंदर और बण के मध्य युद्ध होता है। सिकन्दर घायल हो जाता है। चन्द्रगुप्त विजय होती है।

                                      तृतीय अंक

       दृश्य 1

       विपाशा तट का शिबिर है। राक्षस टहल रहा है। चर आकर देता है कि नंद ने सुवासिनी को बन्दी बनाया है और राक्षस को बनानेवाले हैं। एक नायक सैनिकों के साथ आता है। राक्षस को दी बनाने का प्रयत्न करता है। नवागत सैनिक पहले के सैनिकों को दी बनाते हैं। राक्षस आश्यर्च-चकित होकर देखता रहता है। चर उसे भी सूचित करता है कि रावी तट पर अलका का ब्याह होगा।

      दृश्य 2

      रावी तट के उत्सव-शिबिर के निकट टहलता हुआ पर्वतेश्वर। अलका द्वारा किये अपमान पर क्षुब्ध है। आत्महत्या करना चाहता है। चाणक्य उसे रोकता है। वह पर्वतेश्वर को यवनों से प्रतिशोध लेने लिये प्रेरित करता है। कार्नेलिया और चन्द्रगुप्त की बातचीत होती है। कार्नेलिया भारत का पुनः अभिनंदन करती है। राक्षस चाणक्य की नीति की प्रशंसा करता है और अपनी अगुलीय मुद्रा उसे देता है। चाणक्य उस मुद्रा की सहायता से सुवासिनी को कारागार से मुक्त कराता है ।

      दृश्य 3

      रावी तट पर पर्वतेश्वर और चाणक्य। सिकंदर वापस लौट रहा है। यवन तथा भारतीय सेना के प्रमुख पात्र एक दूसरे से मिलते हैं। सिकंदर भारत का अभिनंदन करता है।

     दृश्य 4

      पथ में चर और राक्षस मिलते हैं। चर राक्षस को बताता है कि महाराज नंद ने न तो सुवासिनी को बंदी बनाया है और न ही वह राक्षस से क्रुद्ध है । राक्षस को चाणक्य की चाल स्पष्ट मालूम पड़ती है। सिहरण, अलका, चंद्रगुप्त, चाणक्य और पर्वतेश्वर मिलते हैं। पर्वतेश्वर चद्रगुप्त की पूर्ण सहायता करने का वचन देता है। चन्द्रगुप्त और फिलिस के मध्य द्वंद -युद्ध होता है।

     दृश्य 5

     मगध में नंब की रंगशाला। नद सुवासिनी पर मुग्ध होकर उसे अपनी प्राणोश्वरी बनाने की इच्छा प्रकट करता है। सुवासिनी कहती है-" मैं अमात्य राक्षस की धरोहर है, सम्राट की भोग्या नहीं बन सकती। नद उसे बलपूर्वक पकड़ लेता है। ठीक उसी समय राक्षस प्रवेश है। नंद अपनी करनी पर लज्जा प्रकट करता है। राक्षस सुवासिनी की ले चलता है।

    दृश्य 6

     कुसुमपुर के प्रांत भाग में चाणक्य, मालविका और अलका। चाणक्य मालविका से नंद के पास नर्तकी के रूप में एक पत्र ले जाने को कहत है। वह पत्र राक्षस की ओर से लिखा हुआ है। चाणक्य की आज के अनुसार अलका भी मालविका के पीछे जाती है। शकटार और चाणक्य के बीच वार्तालाप। नद से प्रतिशोध लेने में चाणक्य की सहायता करने के लिए शकटार अपनी सम्मति देता है। 

    दृश्य 7

    नंद के राजमदिर का एक प्रकोष्ठ है। नंद का मन शकित है। वररुचि मौर्य की स्त्री को साथ लिये प्रवेश करता है। नंद मौर्य की स्त्री के केश पकड़कर खींचना चाहता है। वररुचि बीच में आकर रोकता है। नंद के आदेश पर प्रहरी वररुचि और मौर्य की स्त्री को बन्दी बनाता है। मालविका से लाये गये छद्म पत्र को नद पढ़ता है। मालविका बंदी होती है।

    दृश्य 8

    कुसुमपुर के प्रान्त-भाग में पथ पर चाणक्य और पूर्वतेश्वर वात्तलिप करते हैं। उस से मालूम पड़ता है कि द्वन्द-युद्ध मे चन्द्रगुप्त को विजय प्राप्त हुई है। गुप्त-द्वार से चन्द्रगुप्त राजमहल में प्रवेश करता है। अपने भाता - पिता के चरण छूता है। चाणक्य नागरिको में विद्रोह फैल को कहता है।

    दृश्य 9

     नंद की रंगशाला में राक्षस और सुवासिनी बंदी के वेष में है। नागरिक नद के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। शकटा नन्द के पृणित अपराधों का न्याय करने की मांग करता है। नंद बन्दी होता है। शकटार नद करती है। चन्द्रगुप्त मगध का शासक घोषित किया जाता है।

                                       चतुर्थ अंक

       दृश्य 1

       मगध के राजकीय उपवन में कल्याणी। नद-वंश के समाप्त होने जसकी अवस्था बदिनी जैसी होती है। पर्वतेश्वर और कल्याणी के बीच होता है। पर्वतेश्चर मगध का आधा राज्य न पाने के कारण विचलित Pा है। पर्वतेश्वर के दुर्व्यवहार से त्रस्त कल्याणी आत्महत्या कर है। चाणक्य अब चन्द्रगुप्त के मार्ग को पूर्णतः निष्कटक मानता है। 

     दृश्य 2

     राक्षस और सुवासिनी के बीच वार्तालाप। राक्षस सुवासिनी से विवाह करना चाहता है। सुदासिनी अपने पिता शकटार से अनुमति लेने को ी है। राक्षस शकटार से कहने का साहस नहीं करता। वह चाणक्य के विरुद्ध विद्रोह फैलाने का निर्णय करता है।

    दृश्य 3

     परिषद्-गृह में राक्षस, शकटार, कात्यायन, मौर्य, मौर्य-पत्नी और चाणाक्य हैं। चाणक्य कहता है कि चन्द्रगुप्त की विजय पर उत्सव न होगा। | मौर्य और मौर्य पत्नी असतोष से परिषद्-गृह को छोड़कर चले जाते हैं। चाणक्य चन्द्रगुप्त के प्राणों की रक्षा का भार मालविका को सौंप देता है। 

    दृश्य 4

     प्रकोष्ठ में चन्द्रगुप्त का प्रवेश। चन्द्रगुप्त और मालविका के बीच वातालाप। चन्द्रगुप्त के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा है। चन्द्रगुप्त के कहने पर मालविका गाती है। शयन का समय होने पर मालविका चन्द्रगुप्त को चन्द्र-सौध में जाकर सोने को कहती है। आर्य चाणक्य की आज्ञा । को सुनाती है - "आज घातक इस शयन - गृह में आवेगे, इसलिये चन्दरप्त यहान मोने पावे, और षड्यंत्रकारी पकड़े जाये।" चन्द्रगुप्त सोने केलिए चला जाता है। मालविका चन्द्रगुप्त का ा पर बैठकर मादकता। का अनुभव करती है। यहाँ मानविका का आदर्श प्रेम व्यजित होता है। उसके प्रेम में अनुपम त्याग है। 

   दृश्य 5

    इस दृश्य में चंद्रगुप्त के मानसिक संघर्ष का पता चलता है। मिह । चन्द्रगुप्त को मालविका की हत्या की खबर बताता है। चन्द्रगुप्त का दुखी होता है।

   दृश्य 6

     सिन्धु तट पर पर्णकुटीर में चणक्य और कात्यायन। कात्याय चाणक्य को गाधार में हो रहे उपद्रवों के समाचार देता है। वह बतात है कि उन उपद्रवों के पीछे राक्षस का हाथ है। आम्भीक चाणक्य । अपने पूर्व कर्मों के प्रति पश्चात्ताप प्रकट करता है।

   दृश्य 7

   कपिशा में एलेक्जेंड्रिया के राज-मदिर में कार्नेलिया और उसकी सखी यवन-युद्ध को लेकर चितित है। सिल्यूकस और कार्नेलिया के की वार्तालाप चलता है। सिल्यूकस राक्षस को बड़ा विद्वान मानता है और उसे भारतीय प्रदेश का क्षत्रप बनाना चाहता है। कार्नेलिया कहती है कि वह उससे डरती है।

   दृश्य 8 

    पथ में चन्द्रगुप्त और सैनिक हैं। चन्द्रगुप्त की बातो से उसकी वीरता का पता चलता है।

   दृश्य 9

    ग्रीक शिबिर है। सुवासिनी बन्दी होकर आती है। कार्नेलिया उसकी परीक्षा लेती है और बाद में अपनी सखी बनाती है। सिल्यूकस चन्द्रगुप्त पर आक्रमण करने की बात कहता है। कार्नेलिया रूठ जाती है।

   दृश्य 10

    युद्ध क्षेत्र में चाणक्य और सिंहरण, चन्द्रगुप्त और सिल्यूक्म युद्ध को लेकर वार्तालाप कर रहे हैं। युद्ध में भारतीय सेनाओं की ओर से लड़ते हुये आम्भीक की मृत्यु होती है।

    दृश्य 11

    चन्द्रगुप्त का साथ देने की प्रतिज्ञा करता है। यवन सेना की पराजय से कुळ कालिया आत्महत्या करने को तत्पर होती है। चद्ग्ति आकर उसकी रक्षा करता है। सिल्यूकस पराजित होता है।

    दृश्य 12

     पथ में साइवर्टियस और मेगास्थनीज के वार्तालाप से यह मालूम होता है कि यवन सेना की पराजय हुई। मेगास्थनीज बताता है कि सन्धि करने के लिए चन्द्रगुप्त एक शर्त लगायी है कि सिन्धु के पश्चिम प्रदेश आर्यावर्त की नैसर्गिक सीमा निषध पर्वत तत् हो । चाणक्य ने भी एक शर्त लगायी कि राजकुमारी कार्नेलिया का सम्राट चन्द्रगुप्त से विवाह हो। सिल्यूकस कार्नेलिया को आशीर्वाद देता है कि वह भारत की सम्राज्ञी बने।

    दृश्य 13

    दाण्ड्यायन का तपोवन। चाणक्य ध्यानस्थ है। मौर्य छुरी निकाल चाणक्य को मारना चाहता है। सुवासिनी दौड़कर उसका हाथ पकड़ लेती है। चन्द्रगुप्त अपने पिता से कहता है- "इस आर्य - साम्राज्य के निर्माण कर्ता ब्राहमण का वध करने जाकर कितना अपराध किया है।" चाणक्य मौर्य के अपराध की क्षमा कर देता है।

   दृश्य 14

   चन्द्रगुप्त और सिम्यूकस के बीच संधि होती है। कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ होता है। इस प्रकार आर्यावर्त और यवन देश के बीच एक निर्मल स्रोतस्विनी बहने लगती है।



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