प्रयोगवादी काव्यधारा
अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित तार सप्तक' के साथ सन् 1943 में प्रयोगों की प्रवृति का आरम्भ हुआ। विभिन्न प्रकार के प्रयोगों की प्रवृत्ति के आधार पर ही यह प्रयोगवाद कहलाया। धीरे-धीरे इन प्रयोगों के परिणामस्वरूप सन् 1953-54 कि लगभग जो काव्यधारा प्रस्फुटित हुई, वह 'नयी कविता' कहानी ।
प्रमुख कवि
इस धारा के प्रमुख कवि अज्ञेय, गिरजाकुमार माथुर, धर्मवीर भारती,शमशेर बहादुर, मुक्तिबोध, भारत भूषण, नरेश मेहता आदि हैं।
काव्यगत विशेषताएँ-इस काव्यधारा की विविध विशेषताएँ :-
(1) इसमें नये जीवन मूल्यों, आदर्शों तथा मान्यताओं को व्यक्त करने का प्रयास किया ।
(2) इस कविता में अतिवैयव्तिकता, अतियथार्थवाद, अतिबोद्धिकता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।
(3) इन कवियों का विद्रोही स्वर कटु तथा व्यंग्यात्मक है। वे प्राचीन को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। उनके काव्य में उसका स्पष्ट विरोध व्यंजित है।
(4) इस कविता में कुण्ठाओं, निराशाओं, भावनाओं तथा यौन-भावनाओं की पर्याप्त स्पष्ट अभिव्यक्ति हुई है।
(5) प्रयोगवादी काव्य में समाज की विसंगतियों, असमानताओं आदि की विभिन्न स्थितियों का चित्रण हुआ है।
(6) इसमें प्रवृत्ति के विविध चित्रों का सुन्दर अंकन हुआ है।
(7) इस कविता में विचित्रता, विकृतियाँ आदि अंकित है।
(8) इन कवियों ने भाषा का उर्दू, अरबी, अंग्रेजी आदि से मिश्रित रूप स्वीकार किया है।
(9) नए प्रतीकों तथा उपमानों से युक्त मुक्तक शैली को अपनाया गया है।
(10) शब्द का बन्धन इन कवियों को स्वीकार नहीं है ।
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