हिन्दी साहित्य का सामान्य परिचय
हिन्दी का पद्य साहित्य
हिन्दी साहित्य का प्रारंभ पद्य रचना से हुआ इसीलिए हिन्दी साहित्य का इतिहास. ही पद्य साहित्य के इतिहास से सम्बद्ध है। यद्यपि साहित्य का प्रारम्भ लगभग आठवीं-नवीं शताब्दी से हो गया था। किन्तु इसका व्यवस्थित रूप दसवीं शताब्दी में ही हो पाया।
तब से लेकर आज तक रचित हिन्दी पद्य-साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है।
(1) आदि काल (वीरगाथा काल) - संवत् 800 से 1375 तक,
सन् 743 से 1318 तक।
(2) पूर्व मध्य काल (भक्तिकाल) - संवत् 1375 से 1700 तक,
सन 1318 से 1643 तक
(3) उत्तर मध्य काल (रीतिकाल) - संवत् 1700 से 1900 तक
सन् 1643 से 1843 तक
(4) आधुनिक काल - संवत् 1900 से अब तक,
सन् 1843 से अब तक ।
विद्वानों ने इन कालों का भी शाखाओं और धाराओं में विभाजन किया है। उस विभाजन का विवरण इस तालिका द्वारा प्रस्तुत है ---
हिन्दी पद्य साहित्य का काल-विभाजन
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(1) वीरगाथा काल (2) भक्तिकाल (3) रीतिकाल (4) आधुनिक काल
(आदि काल) | | |
(निर्गुण भक्तिधारा सगुण भक्तिधारा) (रीतिबद्ध रीतिमुक्त) |
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(ज्ञानमार्गी शाखा प्रेममार्गा शाखा) (रामभक्ति शाखा कुष्णभक्ति शाखा) |
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भारतेन्दु युग द्विवेदी युग छायावाद प्रगतिवाद प्रयोगवाद और नयी कविता
परिचय-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आदिकाल का नाम वीरगाथा काल दिया है और इसका समय संवत् 1050 से लेकर संवत् 1375 तक माना है। उत्तर भारत छोटे-छोटे रजवाड़ों में बंटा हुआ था। ये रजवाड़े परस्पर संघर्ष करके अपनी शक्ति को नष्ट कर रहे थे । उत्तरी भारत पर निरन्तर मुसलमानों के आक्रमण हो रहे थे सामाजिक दृष्टि से यह युग घोर पतन का युग था। समाज में निर्धनता, अशिक्षा तथा अन्धविश्वास व्याप्त थे । इस युग में धर्म का भी पतन हो रहा था। विदेशी आक्रमणकारी इस्लाम धर्म का प्रचार कर रहे थे । हिन्दुओं द्वारा उसका विरोध किया जा रहा था। इस युग के क्षत्रिय अत्यन्त वीर और पराक्रमी थे ठस समय चारों तरफ युद्धों का वातावरण था। अतः इस काल में लिखी गयी कविता में भी वीर रस की प्रधानता थी। इसी आधार पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसको 'वीरगाथा काल' नाम दिया।
प्रमुख रचनाएँ एवं रचनाकार-इस काल की मुख्य रचनाएँ एवं रचनाकार इस प्रकार हैं (1) विजयपाल रासो-नल्लसिंह,
(2) हम्मीर रासो-शारंगधर,
(3) पृथ्वीराज रासो चन्दबरदाई,
(4) परमाल रासो जगनिक,
(5) पदावली, कीर्तिलता, कीर्तिपताका-विद्यापत्ति,
(6) खुमान रासो दलपति विजय,
(7) वीसलदेव रासो नरपति, नाल्ह,
(8) जयप्रकाश भट्ट केदार।
आदिकाल या वीरगाथा काल की कविता की विशेषताएं
(1) युद्ध वर्णन
इस समय की कविता की प्रमुख विशेषता युद्धों का सजीव वर्णन है। इस काल के चाण कवि अपने आश्रयदाताओं का गुणगान कर उन्हें युद्ध के लिए प्रोत्साहित करते थे। आवश्यकता पड़ने पर ये कवि स्वयं भी युद्ध करते थे पृथ्वीराज चौहान द्वारा लड़े गए अनेक युद्धों का वर्णन 'पृथ्वीराज रासों में है।
(2) संकुचित राष्ट्रीयता-
इस युग में राष्ट्रीयता अपने क्षेत्र तक ही सीमित थी कवि अपने आश्रयदाता का ही गुणगान करते थे। अत: कविता में व्यापक राष्ट्रीयता का अभाव था। (3) वीर और शृंगार रस-इस काल में युद्धों का मूल कारण नारी की प्राप्ति थी। अत: रचनाओं में वीर तथा भंगार रस का अद्भुत सम्मिश्रण हुआ है।
(4) आश्रयदाताओं की अति प्रशंसा
कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की अतिश्योक्तिपूर्ण प्रंशसा करने में इतिहास के तथ्यों को भी अवहेलना की। इस तरह आश्रयदाताओं की अति प्रशंसा इस युग की कविता की प्रमुख विशेषता है।
(5) भाषा
इस काल की कविता में 'डिंगल-पिंगल' भाषा का प्रयोग किया गया है। उस समय की साहित्यिक राजस्थानी भाषा को डिंगल के नाम से जाना जाता है। यह भाषा वीर रस के लिए उपयुक्त है उस समय की अपभ्रंश मिश्रित साहित्यिक बजभाषा पिंगल नाम से जानी जाती है। इन कृतियों में संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों के अतिरिक्त अरबी, फारसी के शब्द भी पाये जाते हैं।
(6) शैली-
वीरगाथा काल में मुक्तक तथा प्रबन्ध दोनों प्रकार की शैलियों का प्रयोग हुआ है।
(7) छन्द
इस समय के काव्य में दोहा, बरोटक, गाथा, आर्या,रोला,उल्लाला, कुण्डलिया, छप्पय कवित्त, आदि छन्दों का प्रयोग कलात्मकता के साथ हुआ है।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम देखते है कि वीरगाथा काल में वीर रस की प्रधानता रही। इस काल में इसी के अनुरूप कला का प्रयोग किया गया है।
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