ध्रुवस्वामिनी
नाटककार : जयशंकर प्रसाद
जन्म : 30 जनवरी 1889
जन्म स्थान : काशी
निधन : 14 जनवरी 1937
कथावस्तु
ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद जी की अंतिम रचना है। उनकी अन्य रचनाओं की तुलना में यह छोटी है। फिर भी यह अत्यन्त रोचक है। इस में गुप्त साम्राज्य को मिला अपमान और उसे धोकर फिर चमकने की कहानी कही गयी। एक जासूसी कहानी के अन्दाज में यह नाटक लिखा गया है। आगे नाटक का सारांश दिया जाता है।
मगध में समुद्रगुप्त का शासन चल रहा है। समुद्रगुप्त शक्तिशाली राजा हैं। वे वृद्ध हो चुके हैं। उनके दो बेटे हैं- राम गुप्त और चन्द्रगुप्त। रामगुप्त बड़ा है। वह कायर है। वह विलासी और अयोग्य है। चन्द्रगुप्त छोटा है। वह वीर है। वह आज्ञाकारी और शांतिप्रिय है।
ध्रुवस्वामिनी लिच्छवी राजा की बेटी है। वह राजा अपनी बेटी को मगध राजा समुद्रगुप्त के महल में कुछ समय ठहरने के लिए भेजता है। चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी दोनों एक दूसरे को देखते हैं। दोनों के मन में प्यार पैदा होता है।
समुद्रगुप्त अच्छी तरह जानते हैं कि रामगुप्त कायर है। राजा बनने लायक नहीं है। वह कुबडा, हिजडा, बौना आदि लोगों से खेला करता है। वे यह भी जानते हैं कि चन्द्रगुप्त निडर है। एक राजा का हर गुण उसमें विद्यमान है। उनको मालूम होता है कि चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं। इसलिए वे घोषणा करते हैं कि उनके बाद चन्द्रगुप्त ही राजा बनेगा। वे चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी दोनों का विवाह भी तय करते हैं। मगर विवाह के संपन्न होने से पहले ही मर जाते हैं।
अब रामगुप्त छल और कपट का नाटक खेलने लगता है। शिखरस्वामी मगध का मंत्री है। वह भी बड़ा दुष्ट है। वह रामगुप्त की मदद करता है।
रामगुप्त और शिखर स्वामी दोनों सबको धोखा देते हैं। फलस्वरूप रामगुप्त मगध का राजा बनता है। इसीसे वह तृप्त नहीं होता। वह ध्रुवस्वामिनी से शादी कर लेता है। वह उडते पंछी के पंखों को तोडकर प्रसन्न होता है। ध्रुवस्वामिनी हर दुख झेलकर महल में रहती है।
चन्द्रगुप्त चाहता तो स्वयं राजा बन सकता था और ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर सकता था। वह चाहता तो रामगुप्त को देश से भगा भी सकता था। मगर वह ऐसा नहीं करता। वह शांतिप्रिय है। देश की भलाई चाहना उसका स्वभाव है।
ध्रुवस्वामिनी भी चन्द्रगुप्त के स्वभाव से परिचित है। इसलिए वह चन्द्रगुप्त से कृद्ध नहीं होती बल्कि दुख के आँसू पी जाती है।
रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी से प्यार नहीं करता। वह केवल अपने छोटे भाई के मन को पीड़ा देने के लिए ध्रुवस्वामिनी से विवाह करता है। वह ध्रुवस्वामिनी के पास बैठता भी नहीं। वह हिजडे, बौने, कुबड़े आदि अयोग्य मित्रों के साथ अपना समय गुजारता है। वह ध्रुवस्वामिनी की सहायता के लिए एक गूंगी को नियुक्त करता है। वह हमेशा खड्ग थामे रहती है। उसका नाम मंदाकिनी है। खड्गधारणी-गूंगी-मंदाकिनी तीनों शब्द एक ही स्त्री के लिए प्रयोगित हैं।
ध्रुवस्वामिनी मानती है कि गूगी उसकी सहायता करने के लिए आयी है। वास्तव में वह गूँगी भी नहीं वह ध्रुवस्वामिनी की सहायिका भी नहीं। 1. वह ध्रुवस्वामिनी पर निगराणी रखने आयी है। वह ध्रुवस्वामिनी का हर कार्य देखकर रामगुप्त को सूचित करती है।
रामगुप्त के दिल में अचानक दिगबिजय करने की इच्छा पैदा होती है। वह स्वयं जानता है कि उसमें युद्ध करने की शक्ति नहीं है। इस संदर्भ में शिखरस्वामी उसे युद्ध के लिए प्रेरित करता है। अपने सैनिकों के भरोसे रामगुप्त दिगविजय करने निकलता है। वह भूल जाता है कि राजा का उत्साह ही सेना का उत्साह है।
शक नामक एक राज्य उस जमाने में प्रसिद्ध था। गुप्त साम्राज्य शक राज्य को बार बार हराता था। चूंकि अब तक के गुप्त राजा पराक्रमी थे इसलिए शक राज्य पराजित होता था। शकराज के दिल में इसका दुख था। वह प्रशिशोध लेने के लिए मौका देख रहा था।
रामगुप्त शकराज से युद्ध करने जाता हैं। शकराज युद्ध करने आता है। युद्ध में मगध सेना हार जाती है। रामगुप्त अपने प्राण बचाने के लिए शकराज से संधि करना चाहता है।
शकराज आता है। युद्ध में मगध सेना हार जाती है। रामगुप्त अपने प्राण बचाने के लिए शकराज से संधि करना चाहता है।
शकराज भी इसी मौके का इंतजार करता था। वह अपने सेनापति खिगल से इस संबंध में आलोचना करता है। तब खिंगल कई शर्ते लगाने को कहता है। गुप्त कुल का अपमान करने के लिए शकराज रामगुप्त से उसको पत्नी ध्रुवस्वामिनी को उपहार के रूप में भेजने को कहता है। अपने सैनिकों के लिए भी सुन्दरियाँ भेजने को कहता है। कायर रामगुप्त अपनी जान बचाने के लिए यह सब करने को तैयार हो जाता है।
यह जानकर ध्रुवस्वामिनी क्रोधित होती है। वह अपने पति रामगुप्त से ऐसा न करने को कहती है। लेकिन रामगुप्त अपने इरादे से पीछे नहीं हटता। इस संदर्भ में ध्रुवस्वामिनी अपना स्त्रीत्व बचाने के लिए आत्म हत्या करने तैयार होती है। तब चन्द्रगुप्त ठीक समय पर आकर उसको जान बचाता है।
चन्द्रगुप्त एक उपाय करता है। अपना उपाय वह रामगुप्त का सुनीता है। शकराज्य में किसी ने भी ध्रुवस्वामिनी को नही देखा है। इसका फायदा उठाकर चन्द्रगुप्त स्वयं ध्रुवस्वामिनी का वेशधरण करके शकराज के पास जाएगा। वहाँ जाकर शकराज से वह अकेले मिलेगा। तब अपना असली रूप दिखाकर शकराज को द्वन्द्व युद्ध के लिए बुलाएगा। शकराज लड़ने आएगा और चन्द्रगुप्त उसे मार डालेगा। यही चन्द्रगुप्त का उपाय है।
यह जानकर स्वयं ध्रुवस्वामिनी भी चन्द्रगुप्त के साथ जाना चाहती है। चन्द्रगुप्त ले जाने को तैयार नहीं रहता। ध्रुवस्वामिनी बाध्य करती है। रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी को जाने की अनुमति देता है। चन्द्रगुप्त से भी उसे ले जाने का आग्रह करता है। रामगुप्त दिल में सोचता है कि चन्द्रगुप्त को शकराज मार डालेगा। तब ध्रुवस्वामिनी या तो वहाँ रहेगी या तो आत्म हत्या करके मर जाएगी। इस तरह वह दोनों उलझनों से आज़ाद हो जाएगा।
चन्द्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी का वेश बनाकर शकराज के यहाँ जाता है। ध्रुवस्वामिनी भी उसके साथ जाती है।
शकराज के यहाँ कोमा नामक एक स्त्री है। वह उस राज्य के राजगुप्त मिहिरदेव की बेटी है। शकराज और कोमा दोनों का विवाह तय हो चुका है। ऐसे संदर्भ में शकराज ने ध्रुवस्वामिनी को माँगा है। यह जानकर कोमा दुखी होती है। वह शकराज से प्रार्थना करती है कि स्त्री का अपमान मत करो। स्त्री का अपमान करनेवाले नष्ट हो जाते हैं।
आचार्य मिहिरदेव भी शकराज से मिलते हैं और कहते हैं कि मेरी बेटी के साथ अन्याय मत करो। शकराज जीत की मस्ती और ध्रुवस्वामिनी के मोह में रहता है। वह आचार्य मिहिरदेव का अपमान करता है। व कहते हैं कि आकाश में धूमकेतु निकला है। धरती में एक राजा की मौत निश्चित है।
चन्द्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी के वेश में आता है और शकराज से अकेले में मिलता है। उसे द्वन्द्व लडाई के लिग ललकारता है। तब कीमा शकराज से चन्द्रगुप्त से न लड़ने को कहती है। ध्रुवस्वामिनी को वापस भेज देने करती है। मगर मूर्ख शकराज चन्द्रगुप्त की वीरता को कम अककर उससे लड़ता है। चन्द्रगप्त शकराज को मार डालता है।
खबर पाकर कोमा और मिहिरदेव शकराज की शव को ले जाकर करने के लिए आते हैं। चन्द्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी से लाश ले जाने की अनुमति माँगते हैं। चन्द्रगुप्त हिचकता है। मगर ध्रुवस्वामिनी कोमा हो शकराज की लाश ले जाने की अनुमति देती है। कोमा और मिहिरदेव शव को ले जाते हैं। रास्ते में रामगुप्त के सैनिक उन दोनों को भी मार डालते हैं।
चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी और अन्य स्त्रियाँ सभी मगध लौटते हैं। सभा होती है। जो कुछ भी हुआ उस संबंध में बहस होता है। सब रामगुप्त की निन्दा और चन्द्रगुप्त की प्रशंसा करते हैं।
मंदाकिनी कहती है कि राजा का पहला कर्तव्य राज्य की रक्षा करना है। रामगुप्त ऐसा नहीं कर सका। मगर चन्द्रगुप्त ने ऐसा किया। इसलिए चन्द्रगुप्त ही असली राजा है।
पुरोहित कहते हैं कि जो स्त्री की रक्षा करता है, उसके मान की रक्षा करता है वही उसका पति है। रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी के मान की रक्षा नहीं कर सका मगर चन्द्रगुप्त ने उसका मान बचाया। इसलिए ध्रुवस्वामिनी पर रामगुप्त का कोई अधिकार नहीं है। वह पूर्ण रूप से चन्द्रगुप्त की है।
रामगुप्त इस संदर्भ में आपा खाकर चन्द्रगुप्त को मारने जाता है मगर इससे पहले एक सामंत कुमार रामगुप्त को मार गिराता है। खलनायक का अन्त होता है। चन्द्रगुप्त सशक्त राजा बनकर अपने कुल का नाम रोशन करता है।
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