Wednesday, April 21, 2021

Muhavare /हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे, उनके अर्थ और प्रयोग (क - ख - ग- घ )

 

Muhavare 
हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे,  
उनके अर्थ और प्रयोग
(क - ख - ग- घ )


172. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना)

नगर के मेयर की अर्थी को सभी नागरिकों ने कंधा दिया।

173. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना)

आजकल मुनाफाखोरों के यहाँ कंचन बरस रहा है।

174. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना)

घोटाले में अपना हिस्सा न पाने पर सह–अभियुक्त ने पुलिस के सामने सारे राज उगल दिए थे।

175. कच्चा खा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर देने की धमकी देना)

जब से दोनों मित्र अशोक और नरेश की लड़ाई हुई है, तब से दोनों एक–दूसरे को ऐसे देखते हैं, जैसे कच्चा चबा जाना चाहते हों।

176. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना)

“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है। अब तो उनके कब्र में पाँव लटक गए हैं।” सोनी ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।

177. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना)

गरीब और कमजोर श्यामा को गाँव का चौधरी सबके सामने खरी–खोटी सुना गया, जिसको उसने कलेजे पर पत्थर रखकर सुना लिया।

178. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश)

उत्सवों पर उत्साह कढ़ी का सा उबाल बनकर रह गया है।

179. कलम का धनी–(अच्छा लेखक)

प्रेमचन्द कलम के धनी थे।

180. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा)

सार्थक मेरे कलेजे का टुकड़ा है।

181. कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना)

जंगल से गुजरते वक्त शेर को देखकर मेरा कलेजा धक से रह गया।

182. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना)

भारतवर्ष की उन्नति देखकर चीन के कलेजे पर साँप लोटता है।

183. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना)

आशीष इन्जीनियर बन गया, माँ का कलेजा ठण्डा हो गया।

184. कली खिलना–(खुश होना)

बहुत पुराने मित्र आपस में मिले तो कली खिल गई।

185. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना)

घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुँह को आता हैं।

186. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना)

दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड़ थी कि लोगों के कंधे–से–कंधे छिल गए।

187. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)

राजेश से किसी बात को कहने का क्या लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है।

188. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना)

औरंगजेब ने मराठों से उलझकर अपने किए कराए पर पानी फेर दिया।

189. कान भरना–(चुगली करना)

मंथरा ने कैकेई के कान भरे थे।

190. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना)

जहाँ अधिकारी कान का कच्चा होता है वहाँ सीधे, सरल, ईमानदार कर्मचारियों को परेशानी होती है।

191. कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना।

तुम हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।

192. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना)

दुर्घटनाग्रस्त पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा परिवार काँटों पर लोटता रहा।

193. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना)

राजीव के दूसरे प्रकाशन में जाने से बहुतों के रास्ते का काँटा दूर हो गया।

194. कोढ़ में खाज होना–(एक दुःख पर दूसरा दुःख होना)

मंगली बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहा था। ऊपर से भयंकर रूप से बीमार हो गया। यह तो सचमुच कोढ़ में खाज होना ही है।

195. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना)

विनीता बहुत कमजोर हो गई है। जरा–जरा सी बात पर काटने को दौड़ती है।

196. कान गरम करना–(दण्ड देना)

शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पड़ते हैं।

197. काम तमाम करना–(मार डालना)

भीम ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया।

198. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना)

नेताओं का कार्य एक–दूसरे पर कीचड़ उछालना रह गया है।

199. कट जाना–(अलग होना)

मेरी कड़वी बातें सुनकर वह मुझसे कट गया।

200. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना)

कारगिल में बोफोर्स तोपों की मार से शत्रु के पैर उखड़ गए।

201. कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना)

राम चालाकी में बड़े–बड़ों के कान कतरता है।

202. काफूर होना–(गायब हो जाना)

पेन किलर लेते ही मेरा दर्द काफूर हो गया।

203. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान)

मेरठ में कबाड़ी बाज़ार रेड लाइट एरिया काजल की कोठरी है, उधर जाने’ से बदनामी होगी।

204. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान)

झोला छाप डॉक्टरों पर अधिक विश्वास मत करो, ये तो कूप मण्डूक होते हैं।

205. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना)

सीता का हरण करके तो रावण की किस्मत ही फूट गई।

206. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा)

वह तो कुत्ते की दुम है, कभी सीधा नहीं होगा।

207. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना)

दंगों में तो लगता है, कुएँ में ही भाँग पड़ जाती है।

208. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना)

अब भी समय है, आँखे खोलो अन्यथा कौड़ी के मोल बिकोगे।

209. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना)

विनय ने लड़की के बाप के कान में डाल दिया कि वह मोटर साइकिल लेना चाहता है।

210. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति)

मुकेश से बचकर रहना, वह तो काला नाग है।

211. किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना)

कुछ लोगों द्वारा शराब पीकर हुड़दंग मचाने से पिकनिक का मजा किरकिरा हो गया।

212. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना)

पिछले कुछ वर्षों में मेरठ की काया ही पलट गई है।

213. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना)

जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं उसी में गिरता है।

214. कूच कर जाना–(चले जाना)

सेना 12 बजे कूच कर गई।

215. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना)

लाला रामप्रकाश कौड़ी–कौड़ी पर जान देता है, उससे मदद की आशा मत करो।

216. काले कोसों–(बहुत दूर)

लड़के की नौकरी काले कोसों दूर लगी है, उसका आना भी नहीं होता।

217. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना)

कुपथ पर चलने वाले कुत्ते की मौत मरते हैं।

218. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना)

वायसराय ने कहा, महादेव लेखन में कलम तोड़ देते हैं।

219. कसर लगना–(हानि या क्षति होना)

सेठ जी के पूछने पर उनके मुंशी ने बताया कि इस सौदे में उनको दस लाख रुपए की कसर लग गई।

220. कमर कसना–(तैयार होना)

अरुण ने पी. सी. एस. परीक्षा के लिए कमर कस ली है।

221. कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना)

रामू ने जब मुन्ना की कलई खोल दी, तो उसका चेहरा फीका पड़ गया।

222. कसौटी पर कसना–(परखना)

श्याम परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा।

223. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना)

“मुझे सुधीर की बीमारी का इतना दुःख है कि मुझसे कहते नहीं बन पा रहा है।” राधा ने अपनी सहेली को बताया।

224. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना)

नौकरी चाहिए तो पहले अच्छी पढ़ाई करो। यों ही घर बैठे कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई बात नहीं बनने वाली।

225. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना)

दुष्ट व्यक्ति को चाहे जितना समझाओ, उसके कान पर तक नहीं रेंगती।

226. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना)

प्रश्न का उपयुक्त उत्तर दीजिए, कागज काले करने से क्या लाभ?

227. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना)

टी. टी. के अन्दर घुसते ही बिना टिकट यात्रियों को काठ मार गया।

228. कान काटना–(पराजित करना)

रमेश अपने वाक्चातुर्य से अनेक लोगों के कान काट चुका है।

229. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना)

आधी रात के समय कुत्तों को भौंकता देखकर, चौकीदार के कान खड़े हो गए।

230. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना)

तुम्हारे मोहल्ले के बच्चे तो बड़े बदतमीज़ हैं, इतना शोरगुल करते हैं कि कान खा जाते हैं।

231. कालिख पोतना–(बदनामी करना)

“पर पुरुष से प्रेम करके उसने मुँह पर कालिख पोत ली।”

232. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला)

एकाग्रता के अभाव में किताबी कीड़े भी परीक्षा में असफल हो जाते हैं।

233. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति)

सेठ बनारसीदास का नौकर उनके लिए हमेशा किराए का टटू साबित होता है, क्योंकि वह बस उतना ही कार्य करता है, जितना कहा जाता है।

234. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना)

निशानेबाजी की प्रतियोगिता में विजयी होकर अरविन्द ने किला फ़तेह करने जैसी मिसाल कायम की।

235. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना)

स्मिथ और कविता शुरू में इसलिए कम मिला करते थे कि कहीं लोग उन्हें एक साथ देखकर कोई किस्सा न खड़ा कर दें।

236. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार)

एवरेस्ट पर चढ़ने वाला भारतीय दल पूरी तरह से कील काँटे से लैस था।

237. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना)

धर्मवीर ने अपने शत्रु पर इतना ज़ोरदार कुठाराघात किया कि वह एक ही बार में बेहोश हो गया।

238. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना)

सेनापति ने जिस समय कूच का डंका बजाया, तो सैनिक युद्ध स्थल की तरफ़ दौड़ गए।

239. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना)

भाई साहब थोड़ा–बहुत आराम भी कर लिया करो, आप तो कोल्हू का बैल हो रहे हैं।

240. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना)

“जब से नौकरी छूटी है हम तो कौए उड़ाने लगे।” सुमित ने अपने एक मित्र से अफसोस जाहिर करते हुए कहा।

241. कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव)

रतन के पास इस समय पैसा नहीं है, मकान के टैक्स ने उसका कंगाली में आटा गीला कर दिया है।


(ख)


242. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)

परीक्षा में फेल होने पर रमेश को खरी–खोटी सुननी पड़ी।

243. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना)

मूर्ख व्यक्ति ही सदैव ख्याली पुलाव पकाते हैं, क्योंकि वे कुछ करने से पहले ही अपने ख्यालों में खो जाते हैं।

244. खाक में मिलना–(पूर्णत: नष्ट होना)

“राजन क्यों रो रहे हो ?” उसके एक मित्र ने पूछा, तो उसने रोते हुए जवाब दिया, “हमारा माल जहाज में आ रहा था, वह समुद्र में डूबा गया, मैं तो अब खाक में मिल गया।”

245. खाक छानना–(दर–दर भटकना)

आज के युग में अच्छे–अच्छे लोग बेरोज़गारी के कारण खाक छान रहे हैं।

246. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले)

मनमानी करने की आदत छोड़ दो क्योंकि यहाँ के कुछ नियम–कानून हैं, इसे ‘खालाजी का घर’ मत बनाओ।

247. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना)

राजनीति में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन है; अन्दर ही अन्दर एक–दूसरे के विरुद्ध खिचड़ी पकती रहती है।

248. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना)

“रणभूमि में अपने दुश्मन को हमेशा खीरा–ककड़ी समझकर उस पर टूट पड़ना चाहिए।” कमाण्डर अपने सैनिकों को समझा रहे थे।

249. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना)

हमारे किसान खून–पसीना एक करके अन्न पैदा करते हैं।

250. खेल–खेल में–(आसानी से)

आजकल लोग खेल–खेल में एम. ए. पास कर लेते हैं।

251. खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना)

“कारगिल युद्ध में ‘बी फॉर यू’ टुकड़ी के केवल दो सैनिक ही खेत रहे थे।’ टुकड़ी के कमाण्डर ने अपने अधिकारी को बताया।

252. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना)

सभी विरोधी दल श्री नरेन्द्र मोदी की खोपड़ी को मान गए।

253. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना)

कारगिल पर पाकिस्तान के कब्जे से भारतीय सैनिकों का खून खौल उठा।

254. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना)

रमेश के सिर पर खून सवार हो गया जब उसने देखा कि कुछ लड़के उसके भाई को मार रहे थे।

255. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार)

राजीव तो सभी से खरा खेल फर्रुखाबादी खेलता है।

256. खुले हाथ–(उदारता से)

बहुत से धनी लोग खुले हाथ से दान देते हैं।

257. खून खुश्क होना–(भयभीत होना)

सेना को देख आतंकवादियों का भय से खून खुश्क हो जाता है।

258. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना)

यदि तुमने फिर चोरी की तो खाल उधेड़ दूंगा।

259. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना)

ससुराल में अपने घरवालों के विषय में आपत्तिजनक बातें सुनकर राधिका खून के चूंट पीकर रह गयी थी।

260. खून पीना–(तंग करना/मार डालना)

साहूकार ने तो किसानों का खून पी लिया है।

261. खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना)

उस पर अनेक हत्या, अपहरण जैसे अभियोग हैं, उसे जघन्य कृत्य करने में संकोच नहीं है, क्योंकि उसका खून सफेद हो गया है।

262. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना)

छोटे–मोटे गुण्डे किसी खूटे के बल ही कूदते हैं।


(ग)


263. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना)

तुलसीदास द्वारा कृत रामचरितमानस जनता के गले का हार है।

264. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना)

आजकल पाकिस्तान गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, मगर भारत बड़े सब्र से काम ले रहा है।

265. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना)

राजनीति में लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।

266. गुरु घण्टाल–(बहुत धूर्त)

आपकी लापरवाही से आपका लड़का गुरु घण्टाल हो गया है।

267. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना)

“जब से मीना की शादी हुई है तब से तो उसकी नाक पर ही गुस्सा रहने लगा।” मीना की सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थीं।

268. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना)

आजकल बाजार में शुद्ध देशी घी मिलना गूलर का फूल हो गया है।

269. गाँठ बाँधना–(याद रखना)

यह मेरी बात गाँठ बाँध लो, जो परिश्रम करेगा, वही सफलता प्राप्त करेगा।

270. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला)

डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम गुदड़ी के लाल थे।

271. गोबर गणेश–(बुद्ध)

आज के युग में गोबर गणेश लोगों की गुंजाइश नहीं है।

272. गाल फुलाना–(रूठना)

बच्चों को पढ़ाई करने को कहो, तो गाल फुला लेते हैं।

273. गँवार की अक्ल गर्दन में–(मूर्ख को दण्ड मिले, तभी होश में आता है।)

बहुत समझाने पर तुमने जुआ, चोरी, शराब पीने की आदत नहीं छोड़ी। जब पुलिस ने जमकर पीटा तभी तुमने यह बुरी आदतें छोड़ी। सचमुच तुमने साबित कर दिया, गँवार की अक्ल गर्दन में रहती है।

274. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध)

हम उसे अच्छी तरह जानते हैं, हम उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं।

275. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना)

बिहारी जी ने बिहारी सतसई में गागर में सागर भर दिया है।

276. गाल बजाना–(डींग हाँकना)।

तुम्हारे पास धेला नहीं, पता नहीं क्यों गाल बजाते फिरते हो।

277. गोल कर जाना–(गायब कर देना)

चालाक व्यक्ति सही बातों का उत्तर गोल कर जाते हैं।

278. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना)

मनोज का पी. सी. एस. में चयन हो गया, समझो उसने गढ़ जीत लिया।

279. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना)

व्यापारी गुस्सा पीना भली–भाँति जानता है।


(घ)


280. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना)

कल्लू बहुत अकड़ रहा था, साहब के डाँटने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।

281. घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना)

घर फूंक तमाशा देखने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है।

282. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना)

मुझसे चाल मत चलो, मैं घाट–घाट का पानी पी चुका हूँ।

283. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना)

रामू अस्वस्थ तो था ही, परीक्षा में असफलता की सूचना ने घाव पर नमक छिड़क दिया।

284. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना)

हमने पढ़कर परीक्षा उत्तीर्ण की है, घास नहीं खोदी है।

285. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना)

पुलिस के हटते ही उपद्रवियों ने घात लगाकर दुर्घटना करने वाली बस पर हमला कर दिया।

286. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना)

पृथ्वीराज की मृत्यु सुनकर जयचन्द ने घी के दीए जलाए।

287. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना)

परीक्षा के बाद सभी छात्र कुछ दिन घोड़े बेचकर सोते हैं।

288. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना)

माया ने निहाल से दुश्मनी लेकर अपने खूब घोड़े दौड़ा लिए, लेकिन वह अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी।

289. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना)

रिश्तेदारों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।

290. घर का न घाट का–(कहीं का नहीं)

राजीव तुम पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते तो अच्छा होता। नौकरी के चक्कर में ‘न घर का न घाट का’ वाली स्थिति होने की आशंका अधिक है।

291. घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना)

मनोज के पास पाँच भैंसे हैं, दूध की कोई कमी नहीं, घर में गंगा बहती है।

292. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना)

पुलिस के सामने चोर की घिग्घी बँध गई।

293. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना)

जब आते हो घोड़े पर चढ़े आते हो, थोड़ा सब्र करो, सौदा मिलेगा।

294. घट में बसना–(मन में बसना)

ईश्वर तो प्रत्येक व्यक्ति के घट में बसता है।

295. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना)

भूकम्प में उसका सर्वनाश हो चुका था, अब तो अभागे को घर काटे खाता है।

296. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना)

मेरे अतीत को छेडकर तमने मेरा घाव हरा कर दिया।

297. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना)

भारतीय क्रिकेट टीम के समक्ष टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया ने घुटने टेक दिए।

298. घूरे के दिन फ़िरना–(कमज़ोर आदमी के अच्छे दिन आना)

विधवा ने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला। अब बच्चे कामयाब हो गए हैं, तो अच्छा कमा रहे हैं। सच है घूरे के दिन भी फ़िरते हैं।


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