वर्तनी अशुद्धियाँ
श्रुतियाँ
इ-ई और उ ऊ ध्वनियों के बाद स्वर आने पर य व ध्वनियों का जो सहज उच्चारण होता है, उसे श्रुति कहते हैं। हिंदी में श्रुति वाले शब्दों की बर्तनों में काफी द्वैधता है। इन द्वैध रूपों में से सही रूप का चुनाव करने के लिए कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं ।
1. स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन बनाने के लिए प्रयुक्त ऍ प्रत्यय के साथ य- व श्रुतियों का प्रयोग नहीं होता। जैसे—
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
बालिकायें बालिकाएँ
मातायें माताएँ
कन्यायें कन्याएँ
बहुवें बहुएँ
वस्तुवें वस्तुएँ
गौवें गौएँ
2. परसर्ग के लिए' में श्रुति का प्रयोग नहीं होता, जैसे
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
राम के लिये राम के लिए
उसके लिये उसके लिए
खाने के लिये खाने के लिए
3. क्रिया के 'इए' प्रत्ययांत रूपों में भी 'य' श्रुति का प्रयोग नहीं होता, जैसे:-
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
आइये आइए
बैठिये बैठिए
चलिये चलिए
लिखिये लिखिए
4. जिन शब्दों के पुल्लिंग रूप 'या' लगकर बनते हैं उनके बहुवचन और स्त्रीलिंग के रूप य श्रुति युक्त ये-यी होते हैं, जैसे
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
विशेषण- नए नये
नई नयी
क्रिया- पकाए पकाये
पकाई पकायी
[भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने बिना श्रुति वाले रूपों को सही माना है, जो सर्वथा अवैज्ञानिक है।]
5. स्थायी, फलदायी, अनुयायी, विषपायी आदि शब्दों में भी य श्रुति जरूरी है। किंतु ताई, नाई, पाई, भाई, काई, खाई, राई, टाई, दाई, माई आदि संज्ञा शब्दों; कोई आदि सर्वनामों; बाईस, तेईस आदि संख्याओं, पढ़ाई लखाई आदि क्रिया से बनी भाववाचक संज्ञाओं में श्रुति का प्रयोग नहीं होता ।
व श्रुति के संबंध में प्रायः मतैक्य है। व श्रुति का प्रयोग केवल उच्चारण में होता है। लिखित रूपों में इसका प्रयोग प्रायः नहीं होता, जैसे --
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
संज्ञा साधुवों साधुओं
जन्तुवों जन्तुओं
क्रिया जावेगा जायेगा
खावेगा खायेगा
हुवा हुआ
– किंतु कौवा, पौवा आदि शब्दों में व श्रुति का प्रयोग देखा जाता है ।
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