नादान दोस्त
- प्रेमचंद
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिये थे केशव और उसकी वहन श्यामा दोनों बड़े ध्यान से चिड़िया को वहाँ आते-जाते देखा करते । सवेरे दोनों आँखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और चिड़ा और चिड़िया दोनों को वहाँ बैठा पाते । उनको देखने में दोनों बच्चों को न मालूम क्या मज़ा मिलता, दूध और जलेबी की सुध भी न रहती थी। दोनों के दिल में तरह-तरह के सवाल उठते । अंडे कितने बड़े होंगे? किस रंग के होंगे? कितने होंगे? क्या खाते होंगे ? उनमें से बच्चे किस तरह निकल आएँगे ? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे ? घोंसला कैसा है? लेकिन इन बातों का जवाब देनेवाला कोई नहीं। न अम्मा जी को घर के काम-धंधों से फ़ुरसत थी न बाबू जी को पढ़ने-लिखने से । दोनों बच्चे आपस ही में सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे।
श्यामा कहती-क्यों भइया, बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जाएँगे?
केशव विद्वानों जैसे गर्व से कहता-नहीं री पगली, पहले पर निकलेंगे ।
बगैर परों के बेचारे कैसे उड़ेंगे?
श्यामा-बच्चों को क्या खिलाएगी बेचारी?
केशव इस पेचीदा सवाल का जवाब कुछ न दे सकता था।
इस तरह तीन-चार दिन गुज़र गये। दोनों बच्चों की जिज्ञासा दिन-ब-दिन बढ़ती जाती थी। अंडों को देखने के लिए वे अधीर हो उठते थे । उन्होंने अनुमान लगाया कि अब ज़रूर बच्चे निकल आये होंगे। बच्चों के चारे का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ। चिड़िया बेचारी इतना दाना कहाँ पाएगी कि सारे बच्चों का पेट भरे । गरीब बच्चे भूख के मारे चूँ-चूँ करके मर जाएंगे।
इस मुसीबत का अंदाज़ा करके दोनों घबरा उठे । दोनों ने फ़ैसला किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाए। श्यामा खुश होकर बोली-तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़कर न जाना पड़ेगा न ?
केशव-नहीं, तब क्यों जाएँगी?
श्यामा-क्यों भइया, बच्चों को धूप न लगती होगी?
केशव का ध्यान इस तकलीफ़ की तरफ़ न गया था । बोला-ज़रूर तकलीफ़ हो रही होगी। वेचारे प्यास के मारे तड़पते होंगे । ऊपर छाया भी तो कोई नहीं।
आखिर यही फैसला हुआ कि घोंसले के ऊपर कपड़े की छत बना देनी चाहिए। पानी की प्याली और थोड़े से चावल रख देने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हो गया।
दोनों बच्चे बड़े चाव से काम करने लगे। श्यामा माँ की आँख बचाकर मटके से चावल निकाल लाई । केशव ने पत्थर की प्याली का तेल चुपके से ज़मीन पर गिरा दिया और उसे खूब साफ़ करके उसमें पानी भरा ।
अब चाँदनी के लिए कपड़े कहाँ से आए? फिर ऊपर वगैर छड़ियों के कपड़ा ठहरेगा कैसे और छड़ियाँ खड़ी होंगी कैसे?
केशव बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में रहा । आखिरकार उसने यह मुश्किल भी हल कर दी। श्यामा से बोला-जाकर कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी उठा लाओ। अम्माँ जी को मत दिखाना ।
श्यामा-वह तो बीच से फटी हुई है उसमें से धूप न जाएगी?
केशव ने यूंझलाकर कहा-तू टोकरी तो ला, मैं उसका सूराख बंद करने की कोई हिकमत निकालूँगा।
श्यामा दौड़कर टोकरी उठा लायी केशव ने उसके सूराख में थोड़ा-सा कागज़ ढूँस दिया और तब टोकरी को एक टहनी से टिकाकर बोला-देख, ऐसे ही घोंसले पर उसकी आड़ कर दूँगा । तब कैसे धूप जाएगी?
श्यामा ने दिल में सोचा, भइया कितने चालाक हैं!
(2)
गर्मी के दिन थे। बाबूजी दफ़्तर गये हुए थे। अम्माँ दोनों बच्चों को कमरे में सुलाकर खुद सो गयी थीं। । लेकिन बच्चों की आँखों में आज नींद कहाँ? अम्माँ जी को बहलाने के लिए दोनों दम रोके आँखें बंद किये मौके का इंतज़ार कर रहे थे। ज्योंही मालूम हुआ कि अम्माँ जी अच्छी तरह से सो गयीं, दोनों चुपके से उठे और बहुत धीरे से दरवाज़े की सिटकनी खोलकर बाहर निकल आये। अंडों की हिफ़ाज़त की तैयारियाँ होने लगीं । केशव कमरे से एक स्टूल उठा लाया, लेकिन जब उससे काम न चला तो नहाने की चौकी लाकर स्टूल के नीचे रखी और डरते-डरते स्टूल पर चढ़ा।
श्यामा दोनों हाथों से स्टूल पकड़े हुए थी। स्टूल के चारों टाँगें बराबर न होने के कारण जिस तरफ़ ज़्यादा दबाव पाता था, ज़रा-सा हिल जाता था । उस वक्त केशव को कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती थी, यह उसी का दिल जानता था। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज़ से डॉटता-अच्छी तरह पकड़, वरना उतरकर बहुत मारूँगा। मगर बेचारी श्यामा का दिल तो ऊपर कार्निस पर था । बार-बार उसका ध्यान उधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते ।
केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों चिड़ियाँ उड़ गयीं| केशव ने देखा, कार्निस पर थोड़े तिनके बिछे हुए हैं और उन पर तीन अंडे पड़े हैं। जैसे घोंसले उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा-कै बच्चे हैं भइया?
केशव-तीन अंडे हैं, अभी बच्चे नहीं निकले।
श्यामा-ज़रा हमें दिखा दो भइया, कितने बड़े हैं?
केशव-दिखा दूंगा, पहले ज़रा चिथड़े ले आ, नीचे बिछा दूँ। वेचारे अंडे तिनकों पर पड़े हैं।
श्यामा दौड़कर अपनी पुरानी धोती फाड़कर एक टुकड़ा लायी। केशव ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसकी कई तह करके उसने एक गद्दी बनायी और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनों अंडे धीरे से उस पर रख दिये ।
श्यामा ने फिर कहा-हमको भी दिखा दो भइया ।
केशव-दिखा दूंगा, पहले ज़रा वह टोकरी तो दे दो, ऊपर छाया कर दूँ ।
श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली-अब तुम उतर आओ, मैं भी तो देखेूं ।
केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा-जा, दाना और पानी की प्याली ले आ, मैं उतर आऊँ तो तुझे दिखा दूंगा।
श्यामा प्याली और चावल भी लायी। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दीं और आहिस्ता से उतर आया।
श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा-अब हमको भी चढ़ा दो भइया।
केशव-तू गिर पड़ेगी।
श्यामा-न गिरूँगी भइया, तुम नीचे से पकड़े रहना।
केशव-न भइया, कहीं तू गिर-गिरा पड़ी तो अम्माँ जी मेरी चटनी ही कर डालेंगी। कहें कि तूने ही चढ़ाया था । क्या करेगी देखकर? अब अंडे बड़े आराम से हैं। जब बच्चे निकलेंगे, तो उनको पालेंगे।
दोनों चिड़ियाँ बार-बार कार्निस पर आती थी और बगैर बैठे ही उड़ जाती थीं केशव ने सोचा, हम लोगों के डर से नहीं बैठतीं । स्टूल उठाकर कमरे में रख आया, चौकी जहाँ की थी, वहाँ रख दी।
श्यामा ने आँखों में आँसू भरकर कहा-तुमने मुझे नहीं दिखाया, मैं अम्माँ जी से कह दूँगी।
केशव-अम्माँ जी से कहेगी तो बहुत मारूँगा, कहे देता हूँ।
श्यामा-तो तुमने मुझे दिखाया क्यों नहीं?
केशव-और गिर पड़ती तो चार सर न हो जाते!
श्यामा-हो जाते, हो जाते । देख लेना मैं कह दूंगी!
इतने में कोठरी का दरवाज़ा खुला और माँ ने धूप से आँखों को बचाते हुए कहा-तुम दोनों वाहर कव निकल आये? मैंने कहा था न कि दोपहर को न निकलना? किसने किवाड़ खोला?
किवाड़ केशव ने खोला था, लेकिन श्यामा ने माँ से यह बात नहीं कही । उसे डर लगा कि भइया पिट जाएँगे। केशव दिल में काँप रहा था कि कहीं श्यामा कह न दे। अंडे न दिखाए थे, इससे अब उसको श्यामा पर विश्वास न था। श्यामा सिर्फ़ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस कसूर में हिस्सेदार होने की वज़ह से इसका फ़ैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं।
माँ ने दोनों को डाँट-डपटकर फिर कमरे में बंद कर दिया और आप धीरे-धीरे उन्हें पंखा झलने लगी। अभी सिर्फ़ दो बजे थे। बाहर तेज़ लू चल रही थी। अब दोनों बच्चों को नींद आ गयी थी।
(3)
चार बजे यकायक श्यामा की नींद खुली। किवाड़ खुले हुए थे। वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आयी और ऊपर की तरफ़ ताकने लगी। टोकरी का पता न था। संयोग से उसकी नज़र नीचे गयी और वह उलटे पाँव दौड़ती हुई कमरे में जाकर ज़ोर से बोली-भइया, अंडे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गये ।
केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों अंडे नीचे टूटे पड़े हैं और उनसे कोई चूने की-सी चीज़ बाहर निकल आयी है। पानी की प्याली भी एक तरफ़ टूटी पड़ी है।
उसके चेहरे का रंग उड़ गया । सहमी हुई आँखों से ज़मीन की तरफ़ देखने लगा।
श्यामा ने पूछा-बच्चे कहाँ उड़ गये भइया?
केशव ने करुण स्वर में कहा-अंडे तो फूट गये ।
श्यामा-और बच्चे कहाँ गये?
केशव-तेरे सर में । देखती नहीं है अंडों में से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही तो दो-चार दिनों में बच्चे बन जाते।
माँ ने सोटी हाथ में लिये हुए पूछा-तुम दोनों वहाँ धूप में क्या कर रहे हो ?
श्यामा ने कहा-अम्माँ जी, चिड़िया के अंडे टूटे पड़े हैं।
माँ ने आकर टूटे हुए अंडों को देखा और गुस्से से बोलीं-तुम लोगों ने अंडों को छुआ होगा।
अब तो श्यामा को भइया पर ज़रा भी तरस न आया । उसी ने शायद अंडों को इस तरह रख दिया कि वह नीचे गिर पड़े । इसकी उसे सज़ा मिलनी चाहिए। बोली-इन्होंने अंडों को छेड़ा था अम्माँ जी।
माँ ने केशव से पूछा-क्यों रे?
केशव भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा।
माँ-तू वहाँ पहुँचा कैसे ?
श्यामा-चौकी पर स्टूल रखकर चढ़े अम्मा जी।
केशव-तू स्टूल थाम नहीं खड़ी थी?
श्यामा-तुम्हीं ने तो कहा था।
माँ-तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अंडे गंदे हो जाते हैं। चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती।
श्यामा ने डरते डरते पूछा तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरा दिये हैं अम्माँ जी ? माँ-और क्या करती। केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा । हाय, हाय, तीन जाने ले ली दुष्ट ने। केशव रोनी सूरत बनाकर बोला-मैंने तो सिर्फ़ अंडों को गही पर रख दिया था अम्माँ जी!
माँ को हँसी आ गयी। मगर केशव को कई दिनों तक अपनी गलती पर अफ़सोस होता रहा । अंडों की हिफाजत करने के जोग में उसने उनका सत्यानाश कर डाला । इसे याद कर वह कभी-कभी रो पड़ता था।
दोनों चिड़ियाँ वहाँ फिर न दिखाई दीं।
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