कहानी - Kahani
अंगुलिमाल
एक जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू रहता था। वह बड़ा निर्दयी था। वह जंगल में आने-जानेवालों को पकड़कर बहुत सताता था। वह उन्हें मार डालता था। वह उनकी अंगुलियों को माला बनाकर गले में पहनता था। इसीलिए लोग उसे अंगुलिमाल । कहते थे। सभी लोग उससे बहुत डरते थे और जंगल में नहीं जाते थे।
एक बार महात्मा बुद्ध किसी कारण उस जंगल में गये। वे अंगुलिमाल के बारे में जानते थे। जब अंगुलिमाल को महात्मा बुद्ध के आने का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया। गुस्से भरा वह महात्मा बुद्ध के पास आया। महात्मा बुद्ध ने धैर्यपूवर्क मुस्कराकर उसका स्वागत किया। इस प्रकार बिना डरे, मुस्कराकर स्वागत किया जाना अंगुलिमाल के लिए नई बात थी, क्योंकि सब लोग तो उससे डरते थे और उससे घृणा करते थे।
महात्मा बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा, "भाई गुस्सा छोड़ो और सामनेवाले पेड़ से चार पत्तियाँ तोड़ लाओ।" अंगुलिमाल पत्ते तोड़ लाया।
बुद्ध मुस्कराए और बोले, इन पत्तों को जहाँ से तोड़ लाए हो फिर से वहीं लगा आओ।
अंगुलिमाल बोला, 'यह कैसे हो सकता है? जो पत्ता एक बार पेड़ से अलग हो गया, वह फिर कैसे जुड़ सकता है?'
बुद्ध ने उसे समझाया, 'तुम यह जानते हो कि जो एक बार अलग हो गया, वह दुबारा जुड़ता नहीं, तो तुम तोड़ने का काम क्यों करते हो, जब तुम फिर से उसे जोड़ नहीं सकते। पेड़ हो या अन्य प्राणी- सब में प्राण होते हैं। प्राणियों को तुम क्यों सताते हो? उन्हें मारते क्यों हो ?
अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध की बात समझ गया। वह उनकी शरण में आ गया और उनका शिष्य बन गया।
कहानी का सारांश :
अंगुलिमाल
एक जंगल में एक डाकू रहता था। वह बड़ा निर्दयी था। वह लोगों को सताता था और उनकी अंगुलियों को काटकर माला बनाता और उसे अपने गले में पहनता था। इसलिए लोग उसे अंगुलिमाल कहते थे।
एक बार महात्मा बुद्ध उस जंगल की ओर गये। बुद्ध को देखकर अंगुलिमाल को बहुत गुस्सा आया। अंगुलिमाल को देखकर महात्मा बुद्ध ने मुस्कराकर धैर्य के साथ उससे कहा कि गुस्सा छोड़ो और सामनेवाले पेड़ से पत्तियों को तोड़ो और फिर उसी जगह लगाओ। अंगुलिमाल ने पूछा कि यह कैसा हो सकता है?
अंगुलिमाल अब समझ गया कि किसी को तोड़ने पर पुनः फिर उसे जोड़ नहीं सकते। अंगुलिमाल बुद्ध की शरण में आया और उनका शिष्य बना।
सीखः किसी भी चीज़ को बिगाड़ना आसान है, बनाना कठिन है।
No comments:
Post a Comment
thaks for visiting my website