Wednesday, April 14, 2021

कहानी - Kahani / कपड़ों का आदर

 

      कहानी - Kahani      

     कपड़ों का आदर



  

          पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के एक नामी आदमी थे। अमीर-गरीब, राजा-रईस सब उनका आदर करते थे। उनकी सलाह के बिना कोई बड़ा काम न होता था। वे बहुत बड़े विद्वान भी थे। इसलिए लोग उनको "विद्यासागर" यानी " विद्या का समुद्र" कहते थे। वे हमेशा मोटी धोती और मोटा कुरता पहनते थे। वे देखने में बहुत सीधे-सादे जान पड़ते थे।

          एक बार बंगाल के एक धनी आदमी ने उनको दावत पर बुलाया। उस दावत में बहुत-से रईस लोग बुलाये गये थे। बड़ी ठाट-बाट से तैयारी की गयी। अच्छी-अच्छी सवारियों में बैठकर मेहमान लोग दावत में भाग लेने आये। पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर रोज़ की तरह मोटी धोती और मोटा कुरता पहनकर अमीर के घर पहुँचे। दरबान ने विद्यासागर को साधारण कपड़ों में देखकर समझा कि कोई गरीब आदमी बिना बुलाये खाने के लिए चला आया है। इसलिए उसने उनको अंदर जाने नहीं दिया। वे चुपचाप घर लौट गये।

         सभी मेहमान आ चुके थे, लेकिन विद्यासागर का कहीं पता नहीं था। उनके न आने से दावत रुक गयी। मेजबान फ़ौरन गाड़ी भेजकर विद्यासागर को लिवा लाया। इस बार विद्यासागर अच्छे कपड़े पहनकर आये। लोग विद्यासागर को अच्छे कपड़ों में देखकर ताज्जुब करने लगे।

         भोजन परोसा गया और सब लोग खाने लगे, लेकिन विद्यासागर बार-बार अपने कपड़ों से कह रहे थे - "तुम खाओ, अजी, खाते क्यों नहीं?" यह देखकर लोगों को और भी आश्चर्य हुआ। मेजबान ने विद्यासागर के पास जाकर पूछा-“पंडितजी, आप क्या कर रहे हैं? इसका क्या मतलब है?”

          विद्यासागर ने जवाब दिया- "मैं जब सादे कपड़े पहनकर आया था, तब दरबान ने मुझे अंदर आने नहीं दिया। अब अच्छे कपड़ों की वजह से ही अंदर आ पाया हूँ। यह दावत तो कपड़ों के लिए है। इसलिए मैं उन्हीं से खाने को कह रहा हूँ।”

        विद्यासागर की बात सुनकर अमीर आदमी को बड़ी शरम आयी और उसने दरबान की बेवकूफ़ी के लिए पंडितजी से माफ़ी माँगी।


    कहानी का सारांश :

      कपड़ों का आदर

        पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के नामी विद्वान थे। सब लोग उनका बड़ा आदर करते थे। विद्यासागर हमेशा सीधे-सादे कपड़े पहनते थे।

         एक दिन विद्यासागर एक अमीर के घर दावत पर गये। दरबान ने विद्यासागर को सीधे-सादे कपड़े में देखकर अंदर जाने नहीं दिया। विद्यासागर चुपचाप घर लौट गये। विद्यासागर को दावत में अनुपस्थित देखकर मेजबान चिंतित हुए। उन्होंने विद्यासागर को लिवा लाने गाड़ी भेजी। अब की बार विद्यासागर अच्छे कपड़े पहनकर दावत पर गये।

        दावत में विद्यासागर अपने कपड़ों से कह रहे थे - "कपड़े, तुम खाओ। तुम खाते क्यों नहीं?" उनका यह व्यवहार मेजबान की समझ में नहीं आया। मेजबान के पूछने पर विद्यासागर ने सारी बातें बतायीं। मेजबान ने अपने नौकर के अशिष्ट व्यवहार के लिए माफ़ी माँगी।


सीख: मूर्ख लोग बाह्याडंबर का ही आदर करते हैं।




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