कहानी - Kahani
सच्चा न्याय
सिकंदर यूनान देश का बादशाह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने बहुत से देश थे। एक बार उसने हिंदुस्तान पर चढ़ाई की और पंजाब के कुछ हिस्सों को जीत लिया।
एक दिन घूमता हुआ यह एक छोटे गाँव में जा पहुंचा। वहाँ एक किसान का झोंपड़ा था। यह किसान उस गाँव का मुखिया था। उसने सिकंदर की बड़ी खातिर की और उसको आसन पर बिठाया। इसके बाद वह एक चाँदी की थाली में खाद्य पदार्थ और कुछ अशर्फियाँ लेकर बादशाह के सामने हाजिर हुआ खाद्य पदार्थों के साथ अशर्फियों को देखकर सिकंदर हँसा। उसने किसान से पूछा- "क्या तुम लोग खाने-पीने की चीजों के साथ सोना भी खाते हो
किसान ने जवाब दिया "नहीं महाराज, हम लोग सोना नहीं खाते। लेकिन हमने सुना था कि आप सोने की तलाश में अपना घर छोड़कर इतनी दूर आये हैं। इसलिए में यह भेंट आपके सामने लाया हूँ। आप कृपा करके इसे ले लीजिए।"
सिकंदर ने जवाब दिया "नहीं नहीं में धन-संपत्ति की खोज में हिंदुस्तान नहीं। आया हूँ। मैं तुम लोगों के रस्म रिवाज देखने के लिए आया हूँ।"
इतने में उसी गाँव के दो आदमी अपनी पंचायत लेकर मुखिया के पास पहुँचे। एक आदमी ने कहा- “मैंने इस आदमी से एक खेत मोल लिया था। उस खेत में मुझे अशर्फियों से भरा हुआ एक घड़ा मिला है। यह घड़ा मेरा नहीं है, क्योंकि मैंने इससे सिर्फ खेत मोल लिया है, घड़ा नहीं लिया। मैं उस घड़े को इसे देता है तो यह लेता नहीं है। मेहरबानी करके आप इसे समझा दीजिए।"
यह सुनकर मुखिया ने दूसरे आदमी से पूछा- "तुमको क्या कहना है ?"
दूसरे आदमी ने कहा- "मैंने जब अपना खेत इस आदमी को बेच दिया तब खेत में पैदा होनेवाली और मिलनेवाली चीजें भी बेच दी। इसलिए अब उस खेत में अनाज पैदा हो या अशिफिया, सब इस आदमी का है। इसके भाग्य से उस खेत में अशर्फियों का घड़ा मिला। मैं उस घड़े को नहीं ले सकता।"
मुखिया ने यह सुनकर थोड़ी देर सोचा। उसके बाद उसने दोनों से पूछा कि क्या तुम्हारे घर में शादी के लायक लड़का या लड़की हैं? एक ने कहा, "हाँ, मेरे घर में लड़का है। दूसरे ने कहा, 'हाँ.... हाँ, मेरे घर में मेरी बेटी शादी के लिए तैयार है,
तब मुखिया ने हँसते हुए कहा- अच्छा हुआ। तुम लोग उन दोनों की शादी करवा दो और यह घड़ा उन्हें भेंट के रूप में दे दो। यह फैसला सुनकर दोनों किसान बहुत खुश हुए। वे मुखिया को नमस्कार करके निकल गये।
इस पंचायत को देखकर सिकदर को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने मुखिया से कहा भाई, में यही देखने के लिए यहाँ आया था। मैंने सुन रखा था कि हिंदुस्तान के लोग बड़े ईमानदार और उदार होते हैं। किसी के दिल में कोई लालच नहीं होता। आज इन बातों को मैंने अपनी आँखों से देख लिया।
यह कहकर सिकदर वहाँ से चला गया।
कहानी का सारांश
सच्चा न्याय
बादशाह सिकंदर ने हिंदुस्तान पर चढ़ाई की। उसने कुछ हिस्सों को जीत लिया।
एक दिन वह एक गाँव के मुखिया के घर पहुंचा। मुखिया ने उसका स्वागत किया और खाद्य पदार्थों के साथ कुछ अशर्फियाँ भी उनके सामने रखी और कहा- आप सोने की तलाश में हिंदुस्तान आये हैं। तब सिकंदर ने जवाब दिया कि मैं हिंदुस्तान के रस्म रिवाज़ देखने के लिए ही आया हूँ, धन की खोज में नहीं।
इतने में गाँव के दो आदमी अपनी पंचायत लेकर आये। उनमें एक खेत बेचनेवाला था और दूसरा खेत खरीदनेवाला था। खेत खरीदनेवाले आदमी ने कहा कि मुझे खेत में अशर्फियों का घड़ा मिला है। में उसे खेत बेचनेवाले को देना चाहता हूँ, क्योंकि मैंने केवल खेत ही खरीदा है।
तब खेत बेचनेवाले ने कहा कि जब मैंने खेत बेच दिया तो उसमें जो मिलता है, वह खरीदनेवाले का ही होगा। यह देखकर मुखिया ने खेत खरीदनेवाले से कहा, " "देखो! तुम्हारे एक बेटी है, उसकी शादी खेत बेचनेवाले के बेटे से करवा दो अशर्फियों का यह उनको भेंट में दे दो। मुखिया का फैसला दोनों को पसंद आया।
सिकंदर ने इसे देखकर हिंदुस्तान के लोगों के गुणों की तारीफ़ की।
सीख: ईमानदारी एक बहुमूल्य उपहार है।
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