कहानी - Kahani
बख़्शिश माँगने की सज़ा
एक गाँव में एक आदमी रहता था। वह बड़ा विद्वान था। लेकिन था बहुत ग़रीब। लोग कहते है कि विदया और धन दोनों एक साथ किसी के पास नहीं होते। उस आदमी के विषय में यह कहावत बिलकुल सच थी।
एक दिन उस आदमी ने सोचा चलो, राजा के पास जाएँ। उनको कविता सुनाकर माँग लावें। राजा लोग उदार होते हैं। ज़रूर कुछ न कुछ दे देंगे ही । यह सोचकर कुछ उसने अपनी पुरानी शाल और पगड़ी पहनी और चल पड़ा।
वह आदमी राजा के यहाँ पहुँचा। वहाँ एक सिपाही पहरा दे रहा था। सिपाही ने फटेहाल आदमी को देखकर उसे रोका ख़बरदार! कौन है?
आदमी ने कहा- भाई, एक गरीब हूँ। महाराज के दर्शन करना चाहता हूँ।
सिपाही जाओ, महाराज को फ़ुरसत नहीं है।
आदमी समझ गया कि यह कुछ चाहता है। अक्सर राज-दरबार के नौकर बख्शिश के आदी होते हैं। अगर उनको बख़्शिश न दें तो कोई काम न चले। आदमी ने कहा- -भाई, जाने दो। राजा साहब से जो मिलेगा, उसमें से तुमको भी कुछ हिस्सा दूँगा।
सिपाही ने कहा- अच्छा, तो जा सकते हो।
आदमी राजा के दरबार में पहुँचा। वहाँ उसने अच्छे-अच्छे पद सुनाये। राजा ने खुश होकर अपने खजांची के नाम एक ख़त लिख दिया कि इनको पाँच रुपये दे दो। आदमी रुपये लेकर घर चला गया। सिपाही को रुपये देना बिलकुल भूल गया।
दूसरे दिन आदमी फिर आया। उस दिन भी उसने सिपाही से कुछ देने का वादा किया। पर दिया कुछ नहीं। इस तरह कई दिन गुज़र गये। सिपाही सोचने लगा- यह आदमी बड़ा झूठा मालूम होता है। अच्छा, अब इसकी सज़ा उसे देनी चाहिए। सिपाही राजा के पास पहुँचा और सलाम करके कहा- हुज़ूर, वह आदमी जो रोज़ यहाँ आता है,
बहुत बुरा आदमी मालूम होता है। रोज लोगों से आपकी शिकायत करता है। मैंने कल अपने कानों से शिकायत करते हुए सुना।" राजा ने सिपाही की बात सच मान ली।
अगले दिन फिर आदमी दरबार में आया। उसके पद सुनने के बाद राजा ने एक खत दिया। अब उस आदमी ने सोचा चलो आज का पैसा उस सिपाही को परिशश के रूप में दे देंगे। वह खत सिपाही के हाथ देकर चला गया। सिपाही बहुत खुश हुआ। वह तुरंत खजांची के पास पहुंचा खजांची ने जब खत खोलकर पढ़ा तब उसको बड़ा अचरज हुआ। उसमें लिखा था 'खत लानेवाले को दस कोडे लगवा दो। बेचारे सिपाही को क्या मालूम था कि ख़त में क्या लिखा है? खजांची ने राजा के हुक्म के मुताबिक सिपाही को दस कोई लगवा दिये। बेचारा मार खाकर रोता-पीटता राजा के पास गया। राजा को खजांची पर बड़ा गुस्सा आया।
उसे बुलाकर पूछा- "तुमने सिपाही को क्यों पीटा ?" उसने खजांची ने हाथ जोड़कर कहा- हुजूर का हुक्म ! यह सिपाही ख़त लेकर मेरे पास आया। मैंने आपके हुक्म के मुताबिक इसको कोड़े लगवा दिये।"
राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने सिपाही से पूछा- "यह खत तुमको कैसे मिला?"
सिपाही ने कहा- "हुजूर, उसी आदमी ने दिया, जो रोज यहाँ आया करता है।"
राजा ने आदमी को बुलाकर पूछा। उसने सारी कथा सुनायी। तब तो राजा को उस सिपाही पर बड़ा गुस्सा आया। उसे फ़ौरन नौकरी से निकाल दिया।
देखो, बरिशश मांगने की उसको कैसी सजा मिली।
कहानी का सारांश
बख़्शिश माँगने की सज़ा
एक गाँव में एक गरीब विद्वान रहता था। राजा के यहाँ कविता सुनाकर कुछ पाने की इच्छा से राजमहल गया। मगर वहाँ के सिपाही ने उसे रोका। तब विद्वान ने वादा किया कि राजा से जो मिलेगा, उसमें से कुछ हिस्सा दूँगा।
विद्वान के पदों को सुनकर राजा खुश हुआ और इसको पाँच रुपये देने के लिए रोकड़िये के नाम पर पत्र दिया। इनाम पाते ही विद्वान सीधे घर चला गया। सिपाही को रुपये देना भूल गया। इस तरह कई दिन बीत गये। कुछ भी न मिलने के कारण सिपाही ने विद्वान के बारे में राजा से झूठी शिकायत की।
दूसरे दिन विद्वान ने राजा से प्राप्त पत्र को सिपाही के हाथ में देकर कहा-आज का इनाम तुम ले लो। उस दिन पत्र में इस प्रकार लिखा था कि "पत्र लानेवाले को दस कोड़े लगवा दो। बेचारा सिपाही मार खाकर राजा के पास गया। पूछताछ करने पर राजा को सारी बातें मालूम हुईं। अतः उसने सिपाही को नौकरी से निकाल दिया।
सीख:- बख़्शिश माँगना बुरी आदत है।
👇👇👇👇👇👇👇👇
No comments:
Post a Comment
thaks for visiting my website