Muhavare
हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे,
उनके अर्थ और प्रयोग ।
(प - फ - ब - भ - म )
(प)
471. पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना)
मेरी बात पत्थर की लकीर समझो।
472. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना)
वर्षा में मकान गिरने की सूचना पाकर राम पर पहाड़ टूट पड़ा।
473. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना)
कृपाशंकर ने जब से गल्ले का व्यापार किया, तब से उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।
474. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना)
लड़के का कुकृत्य सुनकर सेठ जी का पानी उतर गया।
475. पेट में दाढ़ी होना–(चालाक होना)
मुल्ला जी से कोई लाभ नहीं उठा पाएगा, उनके तो पेट में दाढ़ी है।
476. पेट का पानी न पचना–(अत्यन्त अधीर होना)
“बिना गाली दिए तेरे पेट का पानी नहीं पचता क्या?” बार–बार गाली देते देखकर सोहन ने अपने एक मित्र को टोका।
477. पीठ में छुरा भोंकना–(विश्वासघात करना)
जयन्ती लाल ने अपनी पहचान के शराबी, जुआरी लड़के से श्यामलाल की। बेटी की शादी कराकर, दोस्ती के नाम पर श्यामलाल की पीठ में छुरा भोंकने का–सा कार्य कर दिया।
478. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना)
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊँगा शादी नहीं करूंगा।
479. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना)
जब रामपाल की करतूतों की पोल खुली तो वह पानी–पानी हो गया।
480. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना)
लाला जी ने फूलचन्द की लड़की की शादी में रुपए देकर उनकी पगड़ी रख ली।
481. पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना)
जल्दी से खाना दे दो, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
482. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना)
हैदर अली की सेना के समक्ष अंग्रेज़ों के पैर उखड़ गए।
483. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना)
मैंने इण्टर में हिन्दी में विशेष योग्यता लाकर पत्थर पर दूब जमा दी।
484. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना)
सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी पाने के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
485. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला)
नीरज से कोई रहस्य मत बताना, वह तो पेट का हल्का है।
486. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना)
अजीब इनसान हो, तुम्हारी पटरी किसी से नहीं बैठती।
487. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना)
तुम्हारी पीठ पर विधायक जी का हाथ है, इसीलिए इतराते फ़िरते हो।
488. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना)
तुम्हारे न आने से मेरे तो पाँव तले ज़मीन खिसक गई थी।
489. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना)
प्राइवेट नौकरी कर रहे हो, ज़रा पाँव फूंक–फूंक कर रखो।
490. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना)
भारतीय सैनिक युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।
491. पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना)
सम्राट अशोक ने लगभग पूरे भारत पर शासन किया, वह पानी में आग लगाने की क्षमता रखता था।
492. पंख न मारना–(पहुँच न होना)
अयोध्या के चारों ओर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था थी कि परिन्दा भी पर न मार सके।
(फ)
493. फ़रिश्ता निकलना–(बहुत भला और परोपकारी सिद्ध होना)
“जिसको तुम अपना दुश्मन समझती थी, उसने तुम्हारे बेटे की नौकरी लगवा दी। देखा, वह बेचारा कितना बड़ा फरिश्ता निकला हमारे लिए।”
494. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना)
“तुम तो हमेशा ही मुझ पर फिकरे कसती रहती हो, दीदी को कुछ नहीं कहती।”
495. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना)
“तुम्हारी बात में वजन तो था, लेकिन रामशरण की बात के सामने तुम्हारी बातफीकी पड़ गई।
496. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना)
पृथ्वीराज जयचन्द को फूटी आँख भी नहीं भाते थे।
497. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना)
पुत्र की उन्नति देखकर माता–पिता फूले नहीं समाते हैं।
498. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना)
गोयल साहब इतना कम खाते हैं, मानो फूल सूंघकर रह जाते हों।
499. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना)
इतिहास साक्षी है कि पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते समय भारत को फूंक–फूंक कर पाँव रखने होंगे।
500. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना)
संतू ने जब सुना कि उसकी बेटी ने उत्तर प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं, तो वह खुशी के मारे फूलकर कुप्पा हो गया।
501. फावड़ा चलाना–(मेहनत करना)
मजदूर फावड़ा चलाकर अपनी रोजी–रोटी कमाता है।
502. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना)
लीडर ने मजदूरों में क्या फूंक मार दी, जिससे उन्होंने हड़ताल कर दी।
503. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना)
संजय किसी बात पर कई दिनों से मुझसे नाराज़ था, आज जाने क्या हुआ फट पड़ा।
504. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना)
हृदय प्रताप के व्यापार का ऐसा बंटाधार हुआ कि वह आज तक नहीं पनप पाया।
505. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना)
जीवन में कभी–कभी बहती गंगा में हाथ धोने के अवसर मिल जाते हैं।
506. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना)
गिरिराज लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तो उसके परिवार वाले बाग–बाग हो उठे।
507. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना)
क्रान्तिकारियों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बीड़ा उठा लिया है।
508. बेपर की उड़ाना–(अफवाहें फैलाना/निराधार बातें चारों ओर
करते फिरना) “कुछ लोग बेपर की उड़ाकर हमारी पार्टी को बदनाम करना चाहते हैं। अत: मेरा अनुरोध है कि कोई भी सज्जन ऐसे लोगों की बातों में न आएँ।” नेताजी मंच पर खड़े जनता को सम्बोधित कर रहे थे।
509. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना)
रिश्वत लेते पकड़े जाने पर अधिकारी की शान में बट्टा लग गया।
510. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना)
चन्द्रबाबू नायडू नक्सलवादी हमले में बाल–बाल बचे थे।
511. बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना)
जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।
512. बालू में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना)
बढ़ती महँगाई को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब महंगाई को दूर करना बालू में से तेल निकालने के समान हो गया है।
513. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
लड़का पी. सी. एस. हो गया तो सक्सेना साहब की बाँछे खिल गईं।
514. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना)
मनोज ने सबके सामने संजय की बखिया उधेड़कर रख दी।
515. बच्चों का खेल–(सरल काम)
भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम में शामिल होना कोई बच्चों का खेल नहीं है।
516. बाएँ हाथ का खेल–(अति सरल काम)
अर्द्धशतक लगाना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल था।
517. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना)
राजीव ने कह दिया तो समझो वह नहीं जाएगा, वह अपनी बात का धनी है।
518. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना)
गिरीश मोहन तो बेसिर पैर की बात करता है।
519. बछिया का ताऊ–(मूर्ख)
शिवकुमार से यह काम नहीं होगा, वह तो बछिया का ताऊ है।
520. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना)
राजू अपने अपराध के कारण ही बड़े घर की हवा खा रहा है।
521. बेदी का लोटा–(ढुलमुल)
मनोज की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह तो बेपेंदी का लोटा है।
522. बल्लियाँ उछलना–(बहुत खुश होना)
अपने अरिहन्त प्रकाशन में सेलेक्शन की बात सुनकर वह बल्लियाँ उछलने लगा।
523. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब)
खचेडू पंसारी का हिसाब बावन तोले पाव रत्ती रहता है।
524. बाज़ार गर्म होना–(काम–धंधा तेज़ होना)
आजकल कालाबाज़ारी का बाज़ार गर्म है।
525. बात ही बात में–(तुरन्त)
बात ही बात में उसने तमंचा निकाल लिया।
526. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना)
पवन ने गलत बण्डल बाँध दिया तो सेठ जी उस पर बरस पड़े।
527. बात न पूछना–(आदर न करना)
रमेश ने सिनेमा देखने जाने से पहले पिता जी से नहीं पूछा।
528. बिल्ली के गले में घण्टी बाँधना–(स्वयं को संकट में डालना)
प्रधानाचार्य ने स्कूल का बहुत पैसा खाया है, लेकिन प्रश्न यह है कि प्रबन्धन से शिकायत करके बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे।
भ)
529. भण्डा फोड़ना–(रहस्य खोलना/भेद प्रकट करना)
अनीता और सुचेता में मनमुटाव होने पर अनीता ने सुचेता की एक गुप्त और महत्त्वपूर्ण बात का भण्डाफोड़ कर यह ज़ाहिर कर दिया कि अब वह उसकी कट्टर दुश्मन है।
530. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना)
मेरे बेटे ने एम. बी. ए. की परीक्षा पास कर ली है, परन्तु मेरी आँखें अब भी उसके भविष्य पर लगी रहती हैं।
531. भिरड़ के छत्ते में हाथ डालना–(जान–बूझकर बड़ा संकट अपने पीछे
लगाना) “तुमने इतने बड़े परिवार के व्यक्ति को पीटकर अच्छा नहीं किया। समझो, तुमने भिरड़ के छत्ते में हाथ डाल दिया।”
532. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना)
पुलिस की आहट पाते ही चोर भीगी बिल्ली बन जाते हैं।
533. भूमिका निभाना–(निष्ठापूर्वक अपने काम का निर्वाह करना)
अमिताभ बच्चन ने भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय की जो भूमिका निभाई है, वह देखते ही बनती है।
534. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण)
हमारा गाँव भेड़िया धसान का सशक्त उदाहरण है।
535. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला)
चुनावों में भाड़े के टटुओं की तो मौज आ जाती है।
536. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना)
दिल्ली में रहकर कुछ नहीं सीखा, वहाँ क्या भाड़ झोंकते रहे।
537. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश)
अनपढ़ व अन्धविश्वासी लोगों से मार्क्सवाद की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है।
538. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम)
स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों ने भागीरथ प्रयत्न किया।
(म)
539. मुख से फूल झड़ना–(मधुर वचन बोलना)
प्रशान्त की क्या बुराई करें, उसके तो मुख से फूल झड़ते हैं।
540. मन के लड्डू खाना–(व्यर्थ की आशा पर प्रसन्न होना)
‘मन के लड्डू खाने से काम नहीं चलेगा, यथार्थ में कुछ काम करो।
541. मन ही मन में रह जाना–(इच्छाएँ पूरी न होना)
धन के अभाव में व्यक्ति की इच्छाएँ मन ही मन में रह जाती हैं।
542. माथे पर शिकन आना–(मुखाकृति से अप्रसन्नता/रोष आदि प्रकट
होना) जब मैंने उसके माथे पर शिकन देखी, तो मैं तभी समझ गया था कि मेरे प्रति उसके मन में चोर है।
543. मीठी छुरी चलाना–(प्यार से मारना/विश्वासघात करना)
सेठ दुर्गादास इतनी मीठी छुरी चलाता है कि सामने वाले को उसकी किसी बात का बुरा ही नहीं लगता है और वह कटता चला जाता है।
544. मुँह पर नाक न होना–(कुछ भी लज्जा या शर्म न होना)।
कुछ लोग राह चलते गन्दी बातें करते रहते हैं, क्योंकि उनके मुँह पर नाक नहीं होती।
545. मुट्ठी गरम करना–(रिश्वत देना)
सरकारी कर्मचारियों की बिना मुट्ठी गर्म किए काम नहीं चलता है।
546. मन मैला करना–(खिन्न होना)
क्या समय आ गया है किसी के हित की बात कहो तो वह मन मैला कर लेता है।
547. मुट्ठी में करना–(वश में करना)
अपनी धूर्तता और मक्कारी के चलते मेरे छोटे भाई ने माँ को मुट्ठी में कर रखा है।
548. मुँह की खाना–(हार जाना/अपमानित होना)
अमेरिका को वियतनाम युद्ध में मुँह की खानी पड़ी।
549. मीन मेख निकालना–(त्रुटि निकालना)
आलोचक का कार्य किसी भी रचना में मीन मेख निकालना रह गया
550. मुँह में पानी आना–(लालच भरी दृष्टि से देखना/खाने हेतु लालच)
राजमा देखकर मुँह में पानी आ जाता है।
551. मंच पर आना–(सामना)
गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मंच पर आकर अंग्रेज़ों को सबक सिखाया।
552. मिट्टी का माधो–(मूर्ख)
अतुल की बात का क्या विश्वास करना वह तो मिट्टी का माधो है।
553. मक्खी नाक पर न बैठने देना–(इज़्ज़त खराब न होने देना)
पहले राजीव नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता था। अब उसे इसकी कोई परवाह ही नहीं है।
554. मोहर लगा देना–(पुष्टि करना)
डायरेक्टर साहब ने मेरी पक्की नौकरी पर मोहर लगा दी है।
555. मीठी छुरी चलाना–(विश्वासघात करना)
मनोज से बचकर रहना, वह मीठी छुरी चलाता है।
556. मुँह बनाना–(खीझ प्रकट करना)
मैडम ने जब विकास को डाँटा तो वह मुँह बनाने लगा।
557. मुँह काला करना–(कलंकित करना)
आज तुमने फिर वही कुकर्म करके मुँह काला करवाया है।
558. मैदान मारना–(विजय प्राप्त करना)
भारत ने टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैदान मार लिया।
559. मुहर्रमी सूरत–(शोक मनाने वाला चेहरा)
इतने दिन बाद मिले हो, क्या कारण है जो ये मुहर्रमी सूरत बना रखी है?
560. मक्खी मारना–(बेकार बैठे रहना)
तुम घर पर बैठे–बैठे मक्खी मारते हो कुछ काम धाम क्यों नहीं करते?
561. माथे पर शिकन न आना–(कष्ट में थोड़ा भी विचलित न होना)
रामप्रकाश ने सरेआम अपने बच्चों के हत्यारे को कचहरी में मार डाला, पकड़े जाने पर भी उसके माथे पर शिकन न आई।
562. म्याऊँ का ठौर पकड़ना–(खतरे में पड़ना)
शहर के गुण्डे से पंगा लेकर तुमने म्याऊँ का ठौर पकड़ा है।
563. मुँह पकड़ना–(बोलने न देना)
मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है बोलने वाले का मुँह नहीं पकड़ा जाता है।
564. मुँह धो रखना–(आशा रखना)
वह हमेशा अच्छा काम ही करेगा तुम मुँह धो रखो।
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