रस
रस की परिभाषा :
काव्य के पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने से जो आनंद होता है, उसे रस कहते हैं। काव्य का उद्देश्य आनंद प्रदान करना है। यह कार्य रस के माध्यम से ही संभव है। अब हम इसमें श्रृंगार, हास्य, करुणा, वीर, रौद्र, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत, वात्सल्य आदि रसों का परिचय परिभाषा, लक्षण और उदाहरण के साथ देखेंगे।
1. श्रृंगार रस
परिभाषा : इस रस का प्रमुख विषय प्रेम है। किसी पुरुष के प्रति स्त्री के मन में या स्त्री के प्रति पुरुष के मन में जो प्रेम जागृत होता है, उसकी अभिव्यक्ति को श्रृंगार रस कहते हैं। श्रृंगार रस को रस राज माना जाता है। शृंगार रस के दो भेद हैं। जैसे संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार | संयोग श्रृंगार में प्रेमी-प्रियतम का एक दूसरे के साथ मिलन होता है। प्रेम प्रकट करने वाली सभी क्रियायें संयोग श्रृंगार में होती हैं। वियोग श्रृंगार में प्रेमी-प्रियतम एक दूसरे से दूर होते हैं। वे जिस वेदना का अनुभव मन में करते हैं, उसे वियोग श्रृंगार कहते हैं।
लक्षण :
रस का नाम - श्रृंगार
स्थायी भाव - रति (प्रेम)
आलंबन विभाव - प्रेम पात्र - नायक या नायिका।
उद्दीपन विभाव - सुंदर प्राकृतिक दृश्य, संगीत, प्रिय की चेष्टायें।
अनुभाव - संयोग में - मुख खिलना, एक टक देखना,
मधुर - आलाप, विनोद आदि ।
वियोग में - रुदन, विलाप, जड़ता, निःश्वास ।
संचारी भाव - सभी
उदाहरण:
(1) चितवन चकित चहूँ दिसि सीता।
कहँ गये नृप किसोर मन चीता ।।
लता ओट तब सखिन लखाये।
स्यामल गौर किसोर सुहाये।।
देखि रूप लोचन ललचाने ।
हरये जनु निज निदि पहिचाने।।
- रामचरितमानस (वाटिका प्रसंग) तुलसी
रस - संयोग श्रृंगार
स्थायी भाव - रति
आश्रय - सीता
आलंबन विभाव - राम
उद्दीपन विभाव - राम का सौंदर्य
अनुभाव - राम को न पाकर सीता के मन में चिंता का उठना,
मन की बेचैनी, तड़प आदि ।
संचारी भाव - - आवेग, चपलता, हर्ष आदि ।
(2) आँखों में प्रिय मूर्ति थी, भूले थे सब भोग,
हुआ योग से भी अधिक उसका विषम वियोग।
आठ पहर चौंसठ घठी स्वामी का ही ध्यान,
छूट गया पीछे स्वयं उससे आत्मज्ञान
रस - वियोग श्रृंगार स्थायीभाव रति
आश्रय - ऊर्मिला
आलंबन - लक्ष्मण
उद्दीपन - लक्ष्मण की मूर्ति को आँखों में पाना।
अनुभव - रुदन, कंप, अश्रु
संचारी भाव - स्मृति
************
2. हास्य रस
परिभाषा : हास्य रस का विषय हास्य है। किसी विचित्र रूप या चेष्टा को देखकर या कथन सुनकर हँसी पैदा होती है। काव्य में मनोरंजन बढ़ाने के लिए हास्य रस सहायक होता है।
लक्षण :
रस का नाम - हास्य
स्थायी भाव हास
आलंबन विभाव - जिसको देखकर हँसी आती है।
उद्दीपन विभाव आलंबन की चेष्टाएँ, विचित्र वेश,कथन आदि।
अनुभाव - मुस्काना, हँसना, लोट-पोट होना, आँसू आना। ,
संचारी भाव - हर्ष, चपलता, आलस्य ।
उदाहरण :
जेहि समाज बैठे मुनि जाई, हृदयरूप अहसिति अधिकाई।
तहैं बैठे महेल गन दोऊ, विप्र बेस नात लखै न कोऊ।
करहि कूट नारदहिं सुनाई, नोलि दीन्हि हरि सुन्दरताई।
रीझिहि राजकुँआरि छवि देखि, इनहि वरिहि हरिजानि बिलेखी।
पुनि पुनि मुनि उक्सहिं अकुलाहिं, देखि दशा हरगन मुसुकाहि ।
विश्वमोहिनी के स्वयंवर में बन्दर के मुखाकृति वाले वर्णन में तुलसीदास जी हास्य रस को प्रकट करते हैं। जैसे,
आलम्बन विभाव - नारद
उद्दीपन विभाव - उनकी बन्दर की आकृति, राजकुमनारी को आकृष्ट
करने के लिए बार बार उठना ।
************
3. करुण रस
परिभाषा: इसका विषय शोक है। किसी प्रिय व्यक्ति का मरना, प्रिय वस्तु का नष्ट होना या किसी अनिष्ट के उत्पन्न होना आदि से शोक जागृत होता है।
लक्षण :
रस का नाम - करुण
स्थायी भाव - शोक
आलंबन विभाव - प्रिय व्यक्ति की दीन दशा, मृत्यु या प्रिय वस्तु का खो जाना।
उद्दीपन विभाव - आलंबन की दशा गुणों का स्मरण
अनुभाव - रुदन, विलाप-प्रलाप, छाती पीटना पृथ्वी पर लोटना ।
संचारी भाव- मोह, विषाद, जड़ता, उन्माद, चिंता, ग्लानि, व्याधि ।
उदाहरण :
उठी काँतेय की जयकार रण में,
मचा धन घोर हाहाकार रण में
सुयोधन बालकों सा रो रहा था।
खुशी से भीग पागल हो रहा था।
कर्ण की मृत्यु पर सुयोधन के विलाप में करुण रस का संचार है।
जैसे,
रस - करुण
स्थायी भाव - शोक
आलंबन - कर्ण की मृत्यु
अनुभाव - स्तंभ, प्रलाप, सुयोधन का रोना, रण में हाहाकार मचना।
संचारी भाव - ग्लानि, दीनता, जड़ता।
********
4. वीर रस
परिभाषा : इसका विषय उत्साह या जोश है। लडाई को देखकर, शत्रु को सामने पाकर, चारणों के वीर गीत सुनकर लड़ने का उत्साह जागृत होता है। तब वीर रस की निष्पत्ति होती है। वीर रस के चार भेद हैं। जैसे, युद्धवीर, दयावीर, दानवीर और धर्मवीर ।
लक्षण :
रस का नाम - वीर
स्थायी भाव - उत्साह
आलंबन विभाव - शत्रु, हीन या याचक याने जिसे देखकर लड़ने का,
या दान देने का या सहायता करने का उत्साह हो ।
उद्दीपन विभाव - शत्रु की ललकार, दीन का दुख चारणों के गीत आदि ।
अनुभाव - भुजा फडकना, मुख खिलना, आक्रमण करना,
सेना का उत्साह बढाना ।
संचारी भाव - गर्व, हर्ष, उग्रता ।
उदाहरण :
सौमित्र को धननाद का रव अल्प भी न राहा गया।
निज शत्रु को देखे बिना उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर से आदेश ले बुद्धार्थ वे सजने लगे।
रणवाद्य भी निर्देश करके धूम से बजने लगे।।
सानंद लड़ने के लिए तैयार जल्दी हो गये।
उठने लगे उनके हृदय में युद्ध भाव नये नये ।।
आलंबन - घननाद
उद्दीपन - उसका गर्जन, रण वाद्य की ध्वनि
अनुभव - लक्ष्मण का युद्ध के लिए तैयार होना
संचारी भाव - हर्ष
************
5. रौद्र रस
परिभाषा: इस रस का विषय क्रोध है। अपकार करनेवाले या शत्रु को सामने देखकर क्रोध की जागृति होती है।
लक्षण :
रस का नाम - रौद्र
स्थायी भाव - क्रोध
आलंबन विभाव - शत्रु या अपकारक को देखकर क्रोध करना।
उद्दीपन विभाव - अपकारक या शत्रु की चेष्टाएँ, अनुचित कथन आदि।
अनुभाव - आँखें लाल होना, भृकुटि चढ़ना, होंठ दवाना, पीसना, प्रहार करना दाँत
संचारी भाव - गर्व, चपलता, उग्रता, अमर्ष ।
उदाहरण :
गोल कपोल पलटकर सहसा बने भिडों के छत्तों से,
हिलने लगे उष्ण साँसों से ओंठ लपालप ललों से।
कुंद कली से दाँत हो गए बढ बारह की डाठों से,
विकृत, भयानक और रौद्र रस प्रकट पूरी बाढों से।
रस - रौद्र
स्थायी भाव - क्रोध
आलम्बन - राम लक्ष्मण
उद्दीपन - लक्ष्मण का कथन
अनुभाव - मुख विकृत होना
संचारी भाव - उग्रता
*******
6. भयानक रस
परिभाषा :- इस रस का विषय भय है। किसी हिंसक जानवर, प्रकृति का भयंकर रूप, बलवान शत्रु आदि को देखकर मन में भय जागृत होता है।
लक्षण :
रस का नाम - भयानक
स्थायी भाव - भय
आलंबन विभाव - जिसे देखकर भय लगे।
उद्दीपन विभाव - आलंबन की भयंकरता को बढ़ाने वाली वस्तुएँ।
अनुभाव - रोमांच, कंप, वैवर्णय गिरना, भागना, मूर्छित होना।
संचारी भाव - शंका, चिंता त्रास, आवेग ।
उदाहरण :
समस्त सर्पों संग श्याम ज्यों कटे कलिंद की नंदिनी के सु अंक से । खडे किनारे जितने मनुष्य थे, सभी महा शक्ति भीत हो उठे।। हुए कई मूर्छित घोर त्रास से, कई भगे, मेदिनि में गिरे कई। हुई यशोदा आति ही प्रकंपिता, ब्रजेश भी व्यस्त समस्त हो गये। ।
रस - भयानक
स्थायी भाव - भय
आलंबन -साँपों से घेरे कृष्ण का रूप ।
अनुभव - भागना, गिरना, मूर्छित होना।
संचारी भाव - शंका, आवेग, मोह।
7. बीभत्स रस
परिभाषा : इस रस का विषय जुगुप्सा या ग्लानि है। रक्त, दुर्गंध आदि से मन में जुगुप्सा जागृत होती है।
लक्षण :
रस का नाम - बीभत्स
स्थायी भाव -जुगुप्सा
आलंबन विभाव - श्मशान, रुधिर, माँस, फुहडपन ।
उद्दीपन विभाव - दुर्गंध, कीडे, मक्खियाँ बिन विनाना।
अनुभाव - नाक- -भौं सिकोडना, मुँह बिगाडना, रोमांच ।
संचारी भाव - आवेग, मोह, व्याधि ।
उदाहरण :
रक्त-मांस के सडे पंक से उमड रही है।
महा घोर दुर्गंध, रुद्ध हो उठती श्वास ।
तैर रहे अस्थि खंडशत, रुण्ड -मुण्डहत
कुत्सित कृमि-संकुल कदम में महानाश के ।।
रस - बीभत्स
स्थायी भाव - जुगुप्सा
आलंबन - युद्ध भूमि
उद्दीपन - सड़ाव, दुर्गंध.
अनुभाव - श्वास का रुद्ध हो उठना ।
संचारी भाव - व्याधि, आवेग ।
8. अद्भुत रस
परिभाषा : इस रस का विषय आश्चर्य या विस्मय है। अलौकिक वस्तु या अदृष्टपूर्व वस्तु को देखकर विस्मय का भाव मन में जागृत होता है।
लक्षण :
रस का नाम - अद्भुत
स्थायी भाव - विस्मय
आलंबन विभाव - अलौकिक वस्तु, दृश्य या घटना।
उद्दीपन विभाव - आलंबन के अद्भुत गुण कर्म।
अनुभाव - एकटक देखना, स्तंभित होना
संचारी भाव - आवेग, जड़ता, मोह, हर्ष।
उदाहरण :
अखिल भुवन चर-अचर जग हरिमुख में लखिमातु ।
चकित भयी, गदगद वचन, विकसित दृग, पुलकातु ।।
रस - अद्भुत
स्थायी भाव - विस्मय -
आलंबन - कृष्ण का मुख
उद्दीपन - मुख में अखिल भुवनों और चराचर प्राणियों को दिखाना ।
अनुभाव - स्वरभंग, रोमांच, नेत्रों का विकास।
संचारी भाव - त्रास ।
9. शांत रस
परिभाषा : इस रस का विषय निर्वेद या वैराग्य है। संसार की अनित्यता, दुखमयता आदि देखकर संसार की वस्तुओं के प्रति जो वैराग्य भाव पैदा होता है, उसे शांत रस कहते हैं।
लक्षण :
रस का नाम - शांत
स्थायी भाव - शांति या वैराग्य
आलंबन विभाव - शांति या वैराग्य देने वाली वस्तु, आत्मज्ञान आदि ।
उद्दीपन विभाव - तीर्थ यात्रा, सत्यगति, आश्रम आदि ।
अनुभाव - रोमांच, प्रेमाश्रु गिरना आदि।
संचारी भाव - हर्ष, चिंत, धृति, मति ।
उदाहरण :
मन पछितै है अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाइ हरि पद भजु, करम वचन तरु होते
सरस बाहु दस बदन आदि नृप बचेव काल बली ने।
हम हम करि धन धाम सँवारे अंत चले उठि रोते।।
सुत - वनितादि जान स्वास्थ्य रत, न करु नेह सबही ने।
अंतहु तोहि तजैगे पामर, तू न तजै अवही ते ।।
अब नाथहि अनुरागु, जागु, जड़, त्यागु दुरासा जी ने।
बुझे न काम-भगिनि तुलसी कहुँ विषय भोग वहु छीते ।।
आलंबन - सहस्रार्जुन, रावण जैसे राजाओं तक के काल से न बचाना ।
उद्दीपन - नर देह पाकर भी भगवान की भजन में न लगना ।
संचारी भाव - मति, जागु, जड़, विबोध आदि ।
********
10. वात्सल्य रस
परिभाषा : इसमें पुत्र, पुत्री, अनुज, शिष्य आदि के प्रति प्रेम या स्नेह का भाव होता है।
लक्षण :
रस का नाम - वात्सल्य
स्थायी भाव - वात्सल्य या स्नेह ।
आलंबन विभाव संतान, अनुज, शिष्य ।
उद्दीपन विभाव आलंबन की चेष्टाएँ, बाल क्रीडाएँ आदि ।
अनुभव - मुख प्रसन्न होना, चूमना बलैया लेना आदि ।
संचारी भाव - हर्ष।
उदाहरण :
नेक विलोकि धौं रघुबरनि ।
बाल-भूषन वसन, तन सुंदर रुचिर रज भरनि ।
परस्पर खेलनि अजिर उठि चलनि गिरि गिरि परनि ।
झुकनि झाँकनि, छाँह सों किलकनि नयनि हठि लरनि ।
तोतरि बोलनि, विलोकनि मोहनी मन हरनि ।
सखी वचन सुनि कौसिला लखि सुंदर पासे ढरनि ।
भरति प्रमुदित अंक सेंतीत पेंत जनु दुहुँ करनि ।
आलंबन -रघुवर
उद्दीपन - वस्त्र, आभूषण, धूलधूसरित सुंदर शरीर, खेलना,
नाचना, झगड़ना आदि ।
अनुभव - गोद में उठा लेना ।
संचारी भाव - हर्ष, आनंद।
******
No comments:
Post a Comment
thaks for visiting my website